Sunday 21 May 2017

सवाल

हवाओं के ख़िलाफ़ खड़ा हूँ मैं
आंधियों में जलता चिराग हूँ मैं
रंजिशें मोहब्बत की निभाता हूँ
आँखों में चुभता सवाल हूँ मैं।

बयां

दिल का दर्द जुबां से बयां नहीं होता
सुलगती है आग पर धुआं नहीं होता
कुछ मजबूर दिल ऐसे भी हैं जहाँ में
रोते हैं पर आँखों से बयां नहीं होता।

वसूल

दुश्मनों से प्रेम करने चला हूँ आदतन फिर से
जानता हूँ बेहिसाब दर्द देंगे मेरे अपने वसूल ही।

फ़र्ज

सारी सुविधाएं मुहैया करा दी मैंने 
और दिल से बेदख़ल कर दिया
इस तरह निभाया मैंने अपना फ़र्ज
और रिश्तों का क़त्ल कर दिया।

तजुर्बा

तजुर्बा करने में ही 
ताउम्र गुजार दी मैंने
जो एक कदम चल सकता था 
वो भी तो न चला गया मुझसे।

अपमान

शत्रुओं के लिए दिल में सम्मान रखता हूँ।
इस तरह अपने देश का अपमान करता हूँ।

घर

जो थोड़ा रिश्तों के दरम्याँ झुक गए होते
तो कई घर बेवजह टूटने से बच गए होते

चिंगारी

आदत सी हो गई है अब तो अंधेरे में रहने की
कोई चिंगारी भी जलती है तो घबरा जाता हूँ मैं।