Thursday 21 March 2019

विचार

विचारों के कोलाहल में
अपने स्वयं के विचारों पर 
कभी विचार किया हो
मुझे याद नहीं
कभी किसी विचार की
आँधी में मैंने 
जला दिए घर
बुझा दिए दीये
कभी दिवास्वप्न दिखा 
बदल लिया मुखौटा
तो कभी किसी विचार का 
पिछलग्गू बन
पीटता रहा लकीर।

बमुश्किल कोई विचार
कभी ज़ाहिर भी किया मैंने तो
घेर लिया मुझे सैकड़ों हांथों ने
और मुझे भीड़ बना दिया।

आग उगलते विचारों के बीच 
मैंने उन विचारों को दम तोड़ते देखा
जो युद्ध में शांति तलाशते हों
जो अज़ान में सुनते हों
मंदिर की घण्टियाँ।

विचारों की अंतहीन लड़ाई में
विचारहीन विचारों का
शीर्ष पर काबिज़ होना
बेशक शीर्षस्थ लोगों के लिए 
अहंकार का विषय बन गया हो
परंतु यह उन असंख्य लोगों के साथ
गद्दारी है जिनके मुद्दे
संसद सत्र की तरह
शोर-शराबा की भेंट चढ़ गए हों
और स्थगित कर दिए गए हों
अनिश्चित काल के लिए
देश हित में ही।

विचारों के खेल में माहिर खिलाड़ी
अब सिर्फ भावनाओं से ही नहीं खेलते 
बल्कि वे जलती आग में हाँथ भी सेंकते हैं
और मसीहा भी बन जाते हैं।

विचारों के दिवालियापन में
बेशर्म विचारों ने प्रगतिशील विचारों का 
चोंगा पहन लिया है
वाज़िब सवालों को ख़ारिज करने के लिए
कुतर्क गढ़ लिए गए हैं
जन विचारों के प्रहरी 
एकांगी विचारधारा के प्रवक्ता बन गए हैं
लोकतांत्रिक विचारों की हत्या को
विशेषाधिकार बताया जाने लगा है।

इससे बड़ा दुर्भाग्य
इस देश के लिए क्या होगा कि
इस देश में भूख 
अब भी एक चुनावी विचार है 
और रोटी सत्ता की हवस
यह देश अब विचारों से भी 
दरिद्र हो चुका है।