Thursday 27 July 2017

लोग

जरा सी चिंगारी को आग बना देते हैं लोग
आबाद बस्तियों को राख बना देते हैं लोग।

कौन चाहता है कायम रहे मोहब्बत जहाँ में
अमन की बात पर भी खून बहा देते हैं लोग।

मासूमियत खो गई है अब बच्चों के चेहरे से
मासूम हाँथ को भी कुदाल थमा देते हैं लोग।

अंधेरे रास्ते पर चलने के आदी हो गए हैं पाँव
बेवजह उजाले का ख़्वाब दिखा देते हैं लोग।

प्रेम की उम्मीद तक नहीं है आँखों में अब तो
और जमाने के सामने गले लगा लेते हैं लोग।

कुछ ऐसा दौर चला है गलतफहमियों का अब
कि नफ़रतों के साथ जिंदगी बिता देते हैं लोग।

चलो दिल टूटा अब अपने गम को कहीं छुपा लें
जख़्मी दिल से खेलकर  बहुत दर्द देते हैं लोग।

                               

Tuesday 11 July 2017

मनुष्यत्व

ऐसे समय में
जी रहे हैं
हम सभी
जहां सभी
अच्छी चीजों को
वक्त से पहले
विदा किया जाना है।

पक्षियों को तोड़कर
घोंसला
आसमान में
विलीन हो जाना है।

संबंधों के
पेड़ को
उखड़ जाना है
वक्त की आंधी में।

सूर्य को अस्त
हो जाना है
अंधेरे से डरकर।

रास्तों को
खो जाना है
मंजिल से पहले ही।

गिध्दों को
लाश की राजनीति
करते देखना है
या खुद गिद्द हो जाना है।

मासूमों के हाँथ में
किताब की जगह
थमा दिया जाना है
बंदूक।

गुनहगार की तरह
जीना है
स्त्री को
बेवजह।

भुला दिया जाना है
इतिहास को
गौरव को
आत्म उत्थान की
हर गाथा को।

खो देना है
पीढ़ियों को
बूढ़ी आँखों में
अपनों के
इंतजार के
हर सपने को
अमूल्य धरोहर को।

विदा हो जाना है
संस्कारों को
प्रेम को
परिहास को
क्षमा शक्ति की
संस्कृति को
संवेदना को
कविता को
और
कवि को भी।

भावना से
वस्तु बनते
कठोर युग में
जगह ही नहीं
बची है अब
मनुष्यत्व की।
                    

Monday 10 July 2017

आग

भीड़ तंत्र में
गुम हो रहे
मुद्दों को
मुक्कमल आवाज देने के लिए
अपने अंदर
आग बचाए रखना जरूरी है।

इस भयावह समय में
सच के पक्ष में
बेबाक होकर
अपनी बात कहने के लिए
अपने अंदर
आग बचाए रखना जरूरी है।

लोलुप दुनिया में
अपने ज़मीर को
जिंदा रखने के लिए
अपने अंदर
आग बचाए रखना जरूरी है।

अन्याय के समर में
मर रहे मानवीय मूल्यों
को जीवित रखने के लिए
अपने अंदर
आग बचाए रखना जरूरी है।

बेतहाशा भागती जिंदगी में
बिखर रहे संबंधों को
संजोने के लिए
अपने अंदर
आग बचाए रखना जरूरी है।

नफ़रतों के बीच
प्रेम की उम्मीद बचाए
रखने के लिए
अपने अंदर
आग बचाए रखना जरूरी है।

धारा के विपरीत चलते हुए
अकेले पड़ जाने पर
खुद का साथ देने के लिए
अपने अंदर
आग बचाए रखना जरूरी है।

इससे भी कहीं ज्यादा जरूरी है
अपने अंदर की आग को
कमत्तर न आँकना
और गुलाम रोशनी बन
खुद को
बुझ जाने से
बचा लेना।

Friday 7 July 2017

सत्ताएं

सत्ताएं
बल से
छल से
लोभ से
खरीद लेती हैं
कलम को
हाँथ को
जुबां को
और
बिक जाती है
आत्मा भी
सोच भी
विचार भी।

इस प्रकार
सत्ताएं
इशारे पर
नाचने वाली
कठपुतलियाँ
तैयार करती हैं।

कठपुतलियाँ
दिखाती हैं
सुनहरे सपने
और
दम तोड़ देती है
मानवता।

ग़रीबी
अत्याचार
शोषण के प्रश्न
दबा दिए जाते हैं
जबरन
और
हत्या-आत्महत्या
बलात्कार
के सवाल पर भी
संवेदनहीन हो जाती हैं
सत्ताएं।

समाज के 
आखिरी आदमी
का नारा बुलंद करते-करते
चंद लोगों की जागीर
हो जाती हैं
सत्ताएं।

इस तरह
जन कल्याण की
अपार संभावनाओं के
वाबजूद
बेलगाम ताकत
और
दिशाहीन निर्णयों से
कलंकित
हो जाती हैं
सत्ताएं।
       

Thursday 6 July 2017

खुद

जहाँ में इस हद तक खो चुका हूँ मैं खुद को
कि खुद को पाना नामुमकिन सा हो गया है।