Tuesday 30 January 2018

अहिंसक गांधी की तलाश

गांधी के सपनों का
भारत अब भी अधूरा है
गांधी अपने विचारों के साथ
तब्दील कर दिए गए हैं बुतों में
गांधी की आवाज
अनसुनी रह गई है
सत्ता के उन्मादों में|
 

गांधी बचे हैं राजनीति में
अब हथियारों की तरह
राजघाट पर सेंकी जाने लगी हैं
राजनीति की रोटियाँ और
जनपथ पर काबिज़ हो गया है
राजपथ धारदार हथियारों के साथ।

गांधी को हथियाए नेता
गांधी को लिए घूम रहे हैं
सभा-सम्मेलन,चौक-चौराहों पर
और गांधी के चेहरे के पीछे
छुपा ले रहे हैं अपने जुर्मों को
बेशर्मी के साथ।

गांधी के नाम पर
खुल गए हैं दूकान कई 
गांधी को बेच कर
तिज़ोरी भर रहे हैं
तथाकथित बुद्धिजीवी भी
गांधी के सपने को बेच रहे हैं
फाइलों में अफ़सर-बाबू भी|

आक्रांत है यह देश
अंतहीन गुलामी से अब भी
ढूंढ़ता हुआ एक अदद गांधी
खद्दरधारियों की भीड़ में
जो अमन-चैन,शांति के लिए
कुर्बान कर सके खुद को
घनघोर अंधेरे में भी
सपना बुन सके उजालों का
अथाह साहस के साथ
चल सके अकेले भी
लड़ सके हर जुर्म से
बिना डरे बिना झुके
बिना बिके सच बोल सके
हिंसक होते समाज में
अहिंसक गांधी की तलाश

अब भी जारी है|  

Tuesday 2 January 2018

वफ़ा

अपनी वफ़ादारी ख़ुद से ही निभाऊं तो बेहतर है।
वफ़ा की उम्मीद करना भी नाउम्मीद हो जाना है।