आत्म द्वीप
Friday 20 November 2015
सरकार
चुनाव जनता जिताती है कार्य कार्पोरेट का करते हैं
हम जनता के सपने को कार्पोरेट के हांथों बेच देते हैं|
Thursday 19 November 2015
बेवफा जिंदगी
गुमराह मुहब्बत की कहानियों सी है उसकी जिंदगी
जब वक्त वफ़ा करता है तो जिन्दगी बेवफा हो जाती है|
Sunday 15 November 2015
वैचारिक गुलामी
वैचारिक गुलामों
की कोई अपनी भाषा नहीं होती
वैचारिक गुलाम
भेंड़ की तरह
अंध भक्ति
के राग अलापते हैं
और चाहे-अनचाहे
अपने मालिक की
मूर्खता के शिकार
हो जाते हैं |
Wednesday 11 November 2015
एक नन्हीं सी चिड़िया
एक नन्हीं सी चिड़िया थी
तुम सी
डरती सी
घबराती सी
एक नन्हीं सी चिड़िया थी |
कांप जाते थे उसके भी पांव
जैसे सिहर जाती हो तुम
अनहोनी पर|
पर रुकते कहाँ थे
नन्हीं चिड़िया के कदम
जैसे तुम चलती रहती हो
अनथक|
कोई खास वजह थी
जीने की
नन्हीं चिड़िया के जीवन में
तुम्हारी ही तरह|
तुम्हारी ही तरह
दर्द से गहरा रिश्ता था
नन्हीं चिड़िया का भी|
घायल थी नन्हीं चिड़िया
पर लड़खड़ाकर चलती थी
तुम्हारी ही तरह
अपने वजूद के लिए|
घनघोर आँधियों में भी
नन्हीं चिड़िया को
हौसला देते थे
उसके अपने ही पंख
ऊँची उड़ानों का
तुम्हारी ही तरह|
तुम्हारी ही तरह
नन्हीं चिड़िया
देख रही है जग को
अपनी कातर आँखों से
और हँस रही है जग पर
जैसे जग हँसता है उस पर|
Tuesday 10 November 2015
नफ़रत
नफ़रत सिर्फ
आतंकी नहीं फैलाते
नफ़रत फ़ैलाते हैं
लोलुप नेता
नफ़रत फैलाते हैं
बिके हुए बुद्धिजीवी
अपने स्वार्थ के लिए
ताकि ग़रीब को ग़रीब
रखकर
जाति को जाति में
बांटकर
लोगों की भावनाओं से
खेलकर
बेवजह के मुद्दों पर
गुमराह कर
देश को लुटा जा सके
जनता को छला जा सके
और
समाज के आखिरी आदमी
के हक़ पर
कब्ज़ा जमाया जा सके |
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