Tuesday 31 October 2017

गुमनाम

जो एक गुमनाम बातें थीं ज़ेहन बयां न हो सकीं।
जो बेतकल्लुफ़ था वही जहाँ में सरेआम हो गया।

पतवार

भावों के पतवार में बहते हुए ये मैंने जाना
कि अच्छा होता है कभी पत्थर हो जाना।