Monday 28 October 2019

जनपथ


किसान की पीठ
सियासत की सड़क है
जिस पर बेलगाम दौड़ता है
राजपथ
जनपथ को
लहूलुहान करता हुआ।

तिरेंगे को सलामी देती
भूखी अंतड़ियों के पास
बची है सिर्फ
देशभक्ति
और अघाया देश
प्रजातंत्र को खा रहा है।

लालकिला की प्राचीर पर
फहरता झंडा
गवाही दे रहा है
गांधी के सपनों के
कत्लेआम का
और बदहाल देश
खुशहाली की गीत गा रहा है।

दीवारों के साथ
चुन दी गई चीख़ों पर
इश्तिहार चस्पा कर दिया गया है
इंसानियत की
और हैवानियत हँस रहा है
हमारी कायरता पर।

हर हाँथ को काम की जगह
थमा दिया गया है
झंडा
और लहूलुहान है तिरंगा
अपनों के खून से ही।

धर्म की तावीज़
धर्म के ठेकेदारों ने हड़प ली है
और चढ़ावे की वस्तु बन गया है
आम आदमी।

विकास
सत्ता की भूख हो गया है
जहाँ जनता खाली थाली है
इस देश में ग़रीबी
महज़ एक गाली है।

राजनीति में
शुचिता का सवाल पूछना
अपने ही गाल पर
तमाचा जड़ देना है
और अपनी आंखों में
शर्म से गड़ जाना है।

लोग बेतहाशा भाग रहे हैं
भेड़ों की तरह
विचारों ने भीड़ की शक्ल
अख़्तियार कर ली है
और कालिख़ पोत दी गई है
मानवता के मुँह पर।

राजनीति के छिछलेपन में
बेख़ौफ़ मुखौटे
पासे की तरह पलट दे रहे हैं
कायदे-कानून
गुनाहों को मिल गया है
अभयदान।

चुनावी वायदों से
अंटा पड़ा है शहर
और अनगिन कतारों में खड़ी
भ्रमित जनता
अपने हाँथों
अपनी ही मौत चुन रही है।

एक चिंगारी भर से
जल जा रहा है
पूरा शहर
और मुर्दा शांति से भरे हुए हैं
लोग।

व्यवस्था ने पैदा कर दी है
एक बेपरवाह पीढ़ी
बाज़ार के हाँथों बिकी हुई।

आवाम बंट गया है
हज़ार हिस्सों में
आवाम की आवाज़
अनसुनी है सत्ता की गलियारों में
आवाम की आवाज़ को
साज़िश क़रार दिया गया है
आजादी के ख़िलाफ़ ही।

जनपथ को
राजपथ बनाने के लिए
बैठी संसद
स्थगित कर दी गई है
अनिश्चित काल के लिए
जनपथ के सवालों पर ही।

Monday 21 October 2019

वादा

ख़ुद से किया वादा ही सिर्फ मुल्तवी रहा मुझमें।
दूसरों की ख़ातिर तो जिंदगी कुर्बान कर दी मैंने।

Saturday 19 October 2019

भूख

अघाए हुए
अधमरे चेहरों के बीच
जीने की भूख बची रहे
बची रहे आत्मा
दुरात्माओं से भी।

अघोषित युद्ध में कहीं
मोहरा न बना दिया जाऊं मैं
मुझमें अपने दम पर चलने की
काबिलियत बची रहे।

यह जानते हुए कि
अनसुना कर दिया जाऊंगा मैं
मुझमें बेबाक बोलने की
आवाज़ बची रहे।

ऐसे विकट माहौल में
जबकि सच के पक्ष में होना
पंखविहीन हो
उड़ने का हौसला बचाए रखना है
मुझमें खुले आसमान से
विद्रोह करने की ताकत बची रहे।

बची रहे मुझमें
भूखे भेड़िये से
मासूमियत बचाने की भूख
बचा रहूँ मैं
खुद को ख़ुदा समझने से भी।