Sunday 29 December 2019

नज़र

नज़र- नज़र में ख़ुद की नज़र को तराश रहा हूँ
मैं अपनी नज़र को ख़ुदा की नज़र बना रहा हूँ।

Tuesday 3 December 2019

उजाला

कहाँ-कहाँ पहुँचूँ मैं उजाला लेकर
हर दर पर अंधेरा है बाँह फैलाए।।

Monday 25 November 2019

फैसला

मुकदमा भी उनका फैसला भी उनका
ज़िरह कौन करे जब गवाह भी उनका।

Tuesday 19 November 2019

जवाब

सवाल दर सवाल का हिसाब दे मुझे।
ऐ मेरी जिंदगी कुछ तो जवाब दे मुझे।

Sunday 17 November 2019

रूबरू

रिश्तों की बेबसी से रूबरू हो कर यह मैंने जाना।
इक लंबा इंतजार होता है रिश्तों का सुलझ जाना।

Sunday 3 November 2019

गुरुर

जो गुरुर है वो गुरुर भी टूटेगा
आँखों में भरा अहंकार भी टूटेगा।
जो इतराता है सूरज सिर पर
वक्त आने दो वो अंधेरे में डूबेगा।

Monday 28 October 2019

जनपथ


किसान की पीठ
सियासत की सड़क है
जिस पर बेलगाम दौड़ता है
राजपथ
जनपथ को
लहूलुहान करता हुआ।

तिरेंगे को सलामी देती
भूखी अंतड़ियों के पास
बची है सिर्फ
देशभक्ति
और अघाया देश
प्रजातंत्र को खा रहा है।

लालकिला की प्राचीर पर
फहरता झंडा
गवाही दे रहा है
गांधी के सपनों के
कत्लेआम का
और बदहाल देश
खुशहाली की गीत गा रहा है।

दीवारों के साथ
चुन दी गई चीख़ों पर
इश्तिहार चस्पा कर दिया गया है
इंसानियत की
और हैवानियत हँस रहा है
हमारी कायरता पर।

हर हाँथ को काम की जगह
थमा दिया गया है
झंडा
और लहूलुहान है तिरंगा
अपनों के खून से ही।

धर्म की तावीज़
धर्म के ठेकेदारों ने हड़प ली है
और चढ़ावे की वस्तु बन गया है
आम आदमी।

विकास
सत्ता की भूख हो गया है
जहाँ जनता खाली थाली है
इस देश में ग़रीबी
महज़ एक गाली है।

राजनीति में
शुचिता का सवाल पूछना
अपने ही गाल पर
तमाचा जड़ देना है
और अपनी आंखों में
शर्म से गड़ जाना है।

लोग बेतहाशा भाग रहे हैं
भेड़ों की तरह
विचारों ने भीड़ की शक्ल
अख़्तियार कर ली है
और कालिख़ पोत दी गई है
मानवता के मुँह पर।

राजनीति के छिछलेपन में
बेख़ौफ़ मुखौटे
पासे की तरह पलट दे रहे हैं
कायदे-कानून
गुनाहों को मिल गया है
अभयदान।

चुनावी वायदों से
अंटा पड़ा है शहर
और अनगिन कतारों में खड़ी
भ्रमित जनता
अपने हाँथों
अपनी ही मौत चुन रही है।

एक चिंगारी भर से
जल जा रहा है
पूरा शहर
और मुर्दा शांति से भरे हुए हैं
लोग।

व्यवस्था ने पैदा कर दी है
एक बेपरवाह पीढ़ी
बाज़ार के हाँथों बिकी हुई।

आवाम बंट गया है
हज़ार हिस्सों में
आवाम की आवाज़
अनसुनी है सत्ता की गलियारों में
आवाम की आवाज़ को
साज़िश क़रार दिया गया है
आजादी के ख़िलाफ़ ही।

जनपथ को
राजपथ बनाने के लिए
बैठी संसद
स्थगित कर दी गई है
अनिश्चित काल के लिए
जनपथ के सवालों पर ही।

Monday 21 October 2019

वादा

ख़ुद से किया वादा ही सिर्फ मुल्तवी रहा मुझमें।
दूसरों की ख़ातिर तो जिंदगी कुर्बान कर दी मैंने।

Saturday 19 October 2019

भूख

अघाए हुए
अधमरे चेहरों के बीच
जीने की भूख बची रहे
बची रहे आत्मा
दुरात्माओं से भी।

अघोषित युद्ध में कहीं
मोहरा न बना दिया जाऊं मैं
मुझमें अपने दम पर चलने की
काबिलियत बची रहे।

यह जानते हुए कि
अनसुना कर दिया जाऊंगा मैं
मुझमें बेबाक बोलने की
आवाज़ बची रहे।

ऐसे विकट माहौल में
जबकि सच के पक्ष में होना
पंखविहीन हो
उड़ने का हौसला बचाए रखना है
मुझमें खुले आसमान से
विद्रोह करने की ताकत बची रहे।

बची रहे मुझमें
भूखे भेड़िये से
मासूमियत बचाने की भूख
बचा रहूँ मैं
खुद को ख़ुदा समझने से भी।

Monday 12 August 2019

तसव्वुर

खुद की आंखों का तसव्वुर हूँ मैं
मैं जानता हूँ कि मुक़म्मल हूँ मैं।

Thursday 18 July 2019

उम्मीद है

उम्मीद है
एक दिन पहुंच पाऊंगा
अपने घर
दुनिया से बेखबर हो
कुछ दिन रह पाऊंगा।

उम्मीद है
बेतहाशा भागते-भागते
खुद को गिरने से बचा पाऊंगा
हारे हुए समय में
खुद को जीत पाऊंगा।

उम्मीद है
खुद को समझा पाऊंगा
दुनिया की नासमझी
हज़ार नफ़रतों के बीच
प्यार बचा पाऊंगा।

उम्मीद है
नाउम्मीदी के बीच
अपनी उम्मीद को
नए पंख दे पाऊंगा।

उम्मीद है
सारे शब्दों को मिटाकर
वो एक आखिरी
शब्द लिख पाऊंगा
जिससे प्रारंभ हो सके
नव जीवन।

उम्मीद है
यह सब भी न कर सका
तो अपनी उम्मीदों की गठरी को
विदा कर सकूंगा
खुद के विदा होने से पहले।

Thursday 20 June 2019

दीप

नफ़रतों की आँधियों में भी प्रेम का दीप जलाए रखा
हमने अपने खून से बुझते हुए चिरागों को रोशनी दी है|

Saturday 1 June 2019

नाम

नाम था, नाम है और नाम ही रहेगा
शेष सब जीवन का गुमनाम ही रहेगा|

Sunday 19 May 2019

प्रेम

जिंदगी की तमाम रातों के बीच
एक दिन ऐसा आएगा
जब तुम्हारी हथेलियों को
अपने हांथों में थामे हुए
मैं कह सकूंगा कि
मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ
तुम संग
जिंदगी को जिंदगी की तरह जीना चाहता हूँ
इस दुनिया को अब मैं
तुम्हारी निगाहों से देखना चाहता हूँ।

मुद्दतों से इज़हार की चाह लिए
जिंदगी से गुज़र रहा हूँ मैं
जिंदगी की कही-अनकही तमाम किस्से
तुम संग बांटना चाहता हूँ
अतीत की स्मृतियों से
भविष्य को सींचना चाहता हूँ।

तुमसे मिलकर मैं
मैं नहीं रह जाता
दिल के किसी कोने में प्रेम बोने लगता हूँ
तुमसे मिलकर मैं
मनुष्य होने लगता हूँ।

रोज- रोज की मुलाकातों-बातों
हँसते- मुस्कुराते लम्हों के बीच
गुज़रते वक़्त की आंधी में
उजड़ जाऊं मैं
इससे पहले मैं
तुमसे प्रेम का इज़हार करना चाहता हूँ।

Sunday 12 May 2019

माँ

मिट जाएं सारी भाषाएँ
बचा रह जाए
एक शब्द माँ
तो माँ शब्द की संवेदना से
पुनर्जीवित हो सकती हैं भाषाएँ
सृजित हो सकता है साहित्य
माँ शब्द के बचे रहने से
बची रह सकती है मानवीयता।

माँ शब्द की सार्थकता
कहीं बड़ी है वेद, कुरानों से
पूजा-पाठ, तीज-त्योहारों से
माँ शब्द को आत्मसात कर लेना
प्रेम एवं पीड़ा के अंतर को मिटा देना है
माँ शब्द को अर्थ देना
निश्चल प्रेम को प्रतिष्ठित कर लेना है।

माँ शब्द के शब्दकोश में समाहित है
गीत हँसी की, रुदन की, जीवन गति की
माँ शब्द के अनुभव संसार से जुड़ी हैं
अनगिन कहानियाँ मिलन की,बिछुड़न की|

माँ शब्द विस्तार है भावनाओं का
जीवन बोध का
माँ शब्द से आलोकित है अशब्द भी।

जिंदगी की तमाम नाकामयाबियों
निराशाओं के बावजूद
जीने की वजह है माँ
माँ शब्द खोई हुई उम्मीद है
जिसके सहारे बढ़ाया जा सकता है
टूटे जीवन की ओर फिर से पहला कदम।

माँ शब्द का जीवन में होना
जीवन को वरदान मिल जाना है
माँ शब्द का जीवन से रूठ जाना
जीवित साँसों का उखड़ जाना है।

माँ शब्द की ममता में बसे हैं परमात्मा
माँ शब्द की सहनशक्ति
शक्ति की सारी परिभाषाओं से परे है
माँ शब्द अनुभूति की पराकाष्ठा है
माँ शब्द मौन होकर भी मुखर है
माँ शब्द दुआ है, ख़ुदा है
माँ शब्द दुनिया के हर शब्द से जुदा है।

Thursday 21 March 2019

विचार

विचारों के कोलाहल में
अपने स्वयं के विचारों पर 
कभी विचार किया हो
मुझे याद नहीं
कभी किसी विचार की
आँधी में मैंने 
जला दिए घर
बुझा दिए दीये
कभी दिवास्वप्न दिखा 
बदल लिया मुखौटा
तो कभी किसी विचार का 
पिछलग्गू बन
पीटता रहा लकीर।

बमुश्किल कोई विचार
कभी ज़ाहिर भी किया मैंने तो
घेर लिया मुझे सैकड़ों हांथों ने
और मुझे भीड़ बना दिया।

आग उगलते विचारों के बीच 
मैंने उन विचारों को दम तोड़ते देखा
जो युद्ध में शांति तलाशते हों
जो अज़ान में सुनते हों
मंदिर की घण्टियाँ।

विचारों की अंतहीन लड़ाई में
विचारहीन विचारों का
शीर्ष पर काबिज़ होना
बेशक शीर्षस्थ लोगों के लिए 
अहंकार का विषय बन गया हो
परंतु यह उन असंख्य लोगों के साथ
गद्दारी है जिनके मुद्दे
संसद सत्र की तरह
शोर-शराबा की भेंट चढ़ गए हों
और स्थगित कर दिए गए हों
अनिश्चित काल के लिए
देश हित में ही।

विचारों के खेल में माहिर खिलाड़ी
अब सिर्फ भावनाओं से ही नहीं खेलते 
बल्कि वे जलती आग में हाँथ भी सेंकते हैं
और मसीहा भी बन जाते हैं।

विचारों के दिवालियापन में
बेशर्म विचारों ने प्रगतिशील विचारों का 
चोंगा पहन लिया है
वाज़िब सवालों को ख़ारिज करने के लिए
कुतर्क गढ़ लिए गए हैं
जन विचारों के प्रहरी 
एकांगी विचारधारा के प्रवक्ता बन गए हैं
लोकतांत्रिक विचारों की हत्या को
विशेषाधिकार बताया जाने लगा है।

इससे बड़ा दुर्भाग्य
इस देश के लिए क्या होगा कि
इस देश में भूख 
अब भी एक चुनावी विचार है 
और रोटी सत्ता की हवस
यह देश अब विचारों से भी 
दरिद्र हो चुका है।

Tuesday 26 February 2019

कविता

आजकल नहीं लिख रहा हूँ
कोई कविता
नहीं व्यक्त कर रहा हूँ
कोई विचार
जैसे कि विचारों ने
फ़ैसला कर लिया हो
कि अब नहीं होना है
किसी के ख़िलाफ़।

वक्त के बहरेपन में
मुझमें मर रहीं हैं
कविताएं
और एक कवि में
कविता का मर जाना
हमारे समय का
खौफ़नाक सच है
और सच यह भी है कि
ज़ुबान की खरीद-फरोख्त में
जो कवि बच गए हैं
वो ही बहिष्कृत हैं
कवि समाज से भी।

अधीर समय ने
एक कवि को
सुनने का धैर्य खो दिया है
धैर्य से सुने जाने लगे हैं
अकवि।

अब जबकि
अनसुने समय में बोलना
खुद को बेवज़ह साबित कर देना है
बोलने की
कोई मुकम्मल वजह तलाश रहा हूँ मैं
अंधेरे में
अंधेरे के ख़िलाफ़ होने के
नए मायने तलाश रहा हूँ मैं।