Saturday 10 October 2020

जन नायक

राम विलास

होना

अंधेरी कोठरी का

चिराग होना है।


राम विलास होना

गरीब के चूल्हे की

आँच होना है

ख़ुद तपकर

दूसरे की

भूख मिटाना है।


राम विलास होना

सत्ता में

सच की

भागीदारी होना है

राजनीति में

नया इतिहास लिखना है।


राम विलास होना

दलितों

पिछड़ो की

बुलंद आवाज होना है।


राम विलास होना

करोड़ो कौशल्या की

आँखों की लाज रखना है।


राम विलास होना

शोषित

वंचित का

राम बनना है।


राम विलास होना

रावणी दम्भ पर

प्रहार करना है।


राम विलास होना

सदियों के

अपमान का

सम्मान बनना है।


राम विलास होना

जन-जन की

नई पहचान बनना है।


राम विलास होना

अम्बेडकर के

सपने का

साकार होना है।


राम विलास होना

लोकप्रियता के 

शिखर पर 

पाँव

धरती पर

टिकाए रखना है।


राम विलास होना

आत्मद्वीपो भव:

होना है

जन-जन का

अभिमान बनना है।


राम विलास जी का

जाना

जन नायक का

असमय विदा हो जाना है।

एक सूर्य का

अचानक आसमान में

विलीन हो जाना है।


राम विलास होना

जन-जन के 

मन में

अमिट स्मृति

बन जाना है

प्रेरणा बन जाना है

गर्व का विषय

हो जाना है

जन्म-जन्मांतर तक

राम बनकर

जन-जन में

जीवित रह जाना है।


Friday 2 October 2020

बलात्कार

यह समझने में

वक्त लगेगा कि

बलात्कार

स्त्री का होता है

धर्म, स्थान

सम्प्रदाय का नहीं

और यह भी कि

राजनीति में

बलात्कार का मतलब

विपक्ष होता है।

मीडिया के लिए

बलात्कार

न्याय नहीं है

उपार्जन है।

सरकार के लिए

बलात्कार

कानून-व्यवस्था है।

बलात्कार 

शिकारी आंखों के लिए

नए शरीर की तलाश है

भुक्तभोगी परिवार के लिए

अनंत सांत्वना है

अदालत के लिए

लम्बित मुकदमों की सूची में

जुड़ा एक नाम है।

बलात्कार

स्त्री है

स्वाद है

जिसे खाने के बाद

कूड़ेदान में फेंक दिया जाना है

और

सभी के लिए

तमाशा की वस्तु बन जाना है।



Sunday 27 September 2020

एनटीपीसी हूँ मैं

एनटीपीसी हूँ मैं

मुझमें समाहित है शक्ति जल-थल-नभ की

मुझमें समाहित है शक्ति जन-गण-मन की

जन-गण-मन के सपनों का विस्तार हूँ मैं

एनटीपीसी हूँ मैं |

सिंगरौली की धरती का उद्भव एवं विकास हूँ मैं

ऊर्जा सेनानियों की अथक सेवा का परिणाम हूँ मैं

आलोकित है मुझसे भारत माता का हर घर-आँगन

हिम से सागर तट तक का उज्ज्वल विकास हूँ मैं

एनटीपीसी हूँ मैं |

कर्मठ ऊर्जा योद्धाओं की शान हूँ मैं

हजारों महारत्न परिवारों का त्याग हूँ मैं

लाखों लोगों की रोजी-रोटी-रोजगार हूँ मैं

देश के करोड़ों लोगों का अमिट विश्वास हूँ मैं

भारत माता का गर्व एवं उत्थान हूँ मैं

विश्व पटल पर भारत की पहचान हूँ मैं

एनटीपीसी हूँ मैं |

शक्ति से महाशक्ति की अनवरत यात्रा में

भारत की ऊर्जा क्षमता का अनंत आकाश हूँ मैं

आत्मनिर्भर रोशन भारत का पर्याय हूँ मैं

देश का आत्म गौरव, आत्म सम्मान हूँ मैं

भारत वर्ष का शाश्वत सूर्य हूँ मैं

एनटीपीसी हूँ मैं |

मुझसे रोशन है जन-जन का जीवन

अँधेरे जीवन का रोशन संसार हूँ मैं

गरीबों के चेहरे की मधुर मुस्कान हूँ मैं

जन सेवा को समर्पित नाम हूँ मैं

जन-जन का अभिमान हूँ मैं

जन-जन का प्यार हूँ मैं

जन-जन का प्यार हूँ मैं

एनटीपीसी हूँ मैं

एनटीपीसी हूँ मैं।

Saturday 4 July 2020

चुप

इतना चुप हूँ कि सन्नाटे की आवाज आती है
और लोग हैं कि कहते हैं बहुत बोलता हूँ मैं।

Monday 15 June 2020

सुशांत

जब लौट रहे थे लोग
अपने घर
छोड़ रहे थे शहर
पराएपन की जमीन से उखड़
अपनेपन की तलाश में
मीलों चल रहे थे
तब तुम भी लौट आते
सुशांत।

तुम्हारा लौटना
उन युवाओं का लौटना होता
जो चाह कर भी कभी लौट नहीं पाते
अपने घर
अपने सपनों की दुनिया से
समझौता करते-करते
सफेद चादर से ढंक लेते हैं
अपना चेहरा
पर अपने घर लौटना
मुनासिब नहीं समझते।

चाहे जो कुछ भी कमाए हों तुमने
अपनी जिंदगी खोकर
पर वो चार दोस्त भी तो नहीं कमा सके
जो तुम्हारा हौसला बन
तुम्हारी जिंदगी और मौत के बीच
अडिग हो खड़े रह पाते।

तुम्हारी जिंदगी के इन आखिरी पलों को
दुनिया के लिए भूल जाना
कोई मुश्किल नहीं
पर जो ज़ख्म तुमने
अपनों को दिया है
वो ज़ख्म उन्हें रुलाता ही रहेगा
ताउम्र।

अपने घर से
अपनों को ख़ुशी देने की ख्वाहिश के साथ
जब निकले होगे तुम
तब कहाँ सोचा होगा किसी ने
कि तुम राख बनकर लौटोगे।

सुशांत
यह लौटने का दौर है
काश तुमसे सीखकर
लौट आएं
वो सभी सुशांत
जिनका महानगरों में होना
कोई मायने नहीं रखता
मायने रखता है
अपनी माँ के आंचल में
बैठकर दो रोटी खाना
और उनका सहारा बनना।

Friday 8 May 2020

मजदूर

मैं मजदूर हूँ
मैं गली,चौक-चौराहा,सड़क
बस से लेकर रेल तक
राशन की दुकान से
राहत की अनगिनत कतार में हूँ
मैं मजदूर हूँ।

मेरे पैर दुनिया की तरह कठोर हो गए हैं
और कंधे देश की तरह मजबूत
जिस पर ढो सकता हूँ मैं कर्ज का बोझ
बदनामी का दंश लिए चल सकता हूँ मैं
पशुओं की तरह
सैकड़ों मील।

मुझ पर तरस खाने वाले
खा जाते हैं अन्न भंडार
देश के भाग्य की तरह
मेरी भी किस्मत नहीं बदलती
बदलती है सिर्फ तस्वीर
सफ़ेद पन्नों पर
खुशहाल भारत की।

मैं अन्न खाकर नहीं
वादे खाकर जीता हूँ
सूखी अंतड़ियों में
देश की इज्जत पचाता हूँ
तिरंगा हाँथ में लिए
जनपथ से राजपथ तक
लहूलुहान होता रहता हूँ।

लालकिले की प्राचीर से मैं ही गूंजता हूँ
मैं ही अनसुना रह जाता हूँ संसद में
मेरे ही सपने बेचकर
महलों में उगाई जाती हैं रोटियां
मैं ही बासी रोटी की तरह
फेंक दिया जाता हूँ कूड़ेदान में
झुग्गी-झोपड़ी,मलिन बस्तियों में
मैं ही अपराध की तरह पाया जाता हूँ
मैं ही मतदान में वोट बन निकलता हूँ
मैं ही राजकोषीय घाटे की तरह बढ़ता हूँ
मैं ही देश की साख की तरह गिरता हूँ
खेतों में मैं ही खून से पौधों को सींचता हूँ
मैं ही जमीन से उखड़ दर-बदर भटकता हूँ।

मेरे लिए यह देश और मैं देश के लिए
एक असहनीय पीड़ा हूँ
मैं असहनीय पीड़ा सहकर भी चुप हूँ
मैं मजदूर हूँ।