Thursday 28 June 2018

ख्वाब

एक ख़ूबसूरत सी शाम हो और तुम हो
काश जिंदगी में यह ख्वाब मुमकिन हो।

एक आग

मोमबत्तियां
अंधेरों के साथ हो गई हैं
मोमबत्तियों ने तय कर लिया है
जलने की बजाय बुझ जाना।

मोमबत्तियों ने
घुप्प अंधेरों के दंभ में
उजाले को गुनाहगार
ठहरा दिया है
मोमबत्तियों ने गढ़ ली हैं
अन्याय की अनगिन कहानियां।

गुमराह हवाएँ
मोमबत्तियों की शह पर
जलाने लगी हैं बस्तियां।

सुबह के उजाले में
अंधेरे बेनक़ाब हो गए हैं
मोमबत्तियां
ढूंढ़ रही हैं
अपना प्रकाश
और एक आग
जो उन्हें रोशन कर सके।

बेपर्दा

रिश्तों को रफ़्फ़ु करते-करते खुद ही तार-तार हो गया हूँ मैं
और रिश्ते हैं कि बात-बात पर बेपर्दा होने को तैयार बैठे हैं।

Wednesday 27 June 2018

जहर

बहुत मीठा बोलता है वह सबसे
यकीनन जहर बहुत पीता होगा।

Tuesday 26 June 2018

पत्थर

न जाने कितने रास्ते बदले हमने खुद को ही बदलने के लिए
एक धड़कता दिल लेकर चले थे लौटे तो वो भी पत्थर हो गए।

घरौंदा

चलो जज्बातों का एक घरौंदा फिर से बनाएं
सुना है दिल तोड़कर बहुत खुश होता है वो।

Wednesday 20 June 2018

फैसले

जिंदगी के फैसले भी अदालती हो गए हैं
पड़े रहते हैं वर्षों सही वक्त की तलाश में।

Monday 18 June 2018

काबिलियत

दुश्मन भी तसदीक करते हैं मेरी इस काबिलियत की
कि जुल्म के हद से गुजर गया हूँ पर बिका नहीं हूँ मैं।

Saturday 16 June 2018

पिता के सपने


पिता की छाँव में
बेफ़िक्र जिंदगी बिताते हुए
सोचा कहाँ था कि
सिर पर साया न हो तो
असमय पतझड़ में
झुलस जाते हैं ख़्वाब
मुरझा जाते हैं रिश्तों के पेड़
ठूंठ बन जाता है भरा-पूरा परिवार
जड़े टूट जाती हैं हौसलों की
खुशियाँ सन्नाटों से भर जाती हैं
मोहताज़ हो जाती है जिंदगी
आज़ाद होकर भी।

जिंदगी की चिलचिलाती धूप में
अब तन्हा ही तप रहा हूँ मैं
वक्त के बादलों ने जीवन के 
उजालों को अँधेरे से भर दिया है
नन्हें पौधों को जिलाने की जद्दोजहद में
वक्त दर वक्त टूटता जा रहा हूँ मैं
अपनी जड़ों को थामने की पुरजोर कोशिश में
अपनी ज़मीन से ही उखड़ता जा रहा हूँ मैं। 

आगाह करता रहता हूँ मैं
नन्हें पौधों को
ग़ुमराह हवाओं से
अपनी जमीन से उखड़कर  
गमले में बस जाने की चाहत से
कुल्हाड़ी से दोस्ती निभाने की जिद से
यह जानते हुए भी कि आज़ाद ख़्याली में
अक्सर अनसुने रह जाते हैं पिता|

पिता के अधूरे सपने के साथ 
अपने घर-आंगन में
नीम के पेड़ की तरह
रह गया हूँ मैं निपट अकेला
घर की जरूरतों ने
बेघर कर दिया है मेरे अपनों को हीं
कुछ पौधे आसमान की ऊंचाई की जगह 
जमीन पर फैलने की चाहत में 
बोनसाई बनकर रह गए हैं
कुछ पौधों ने इंकार कर दिया है
धूप में रहने से और
खुद छाया बनकर रह गए हैं
कुछेक पौधे अपनी अंतरात्मा को बेचकर
वस्तुओं में तब्दील हो गए हैं 
कुछ हतोत्साहित हो गए हैं
साथी पौधों को बढ़ता देखकर।

अपने जीवन के आखिरी पड़ाव में 
पिता की नसीहतों को 
दुहराता रहता हूँ मंत्र की तरह 
इस आस में कि
दमघोंटू वातावरण में
दम घुटने से पहले
अपनी जमीन पर लौट आएंगे पौधे 
और बंजर होते जीवन में
बारिश की बौछार की तरह  
बो पाऊंगा मैं पिता के सपने |


Tuesday 12 June 2018

दर्द

दिल के दर्दों का अपना कोई ठिकाना नहीं होता
ताउम्र पड़े रह जाते हैं दिल में ही नासूर बनकर।

Thursday 7 June 2018

खुदगर्ज

किसी को इतना भी मत चाहो कि नज़र से गिर जाओ
लोग खुदगर्ज होते हैं बेवजह मोहब्बत भी नहीं करते।

Wednesday 6 June 2018

फर्क

फर्क पड़ता है
किसी के फर्क
न पड़ने से भी।

Tuesday 5 June 2018

यादें

तुम्हारी यादें चाँद की तरह रहती हैं जेहन में
रोशन होता हूँ जिंदगी के अंधेरों में तुमसे हीं।

Sunday 3 June 2018

अदा

धोखा हो भी तो क्या है
वो भी तो एक अदा है।

Saturday 2 June 2018

सितम

एक तेरा साथ निभाने की जिद में
मैंने हरेक सितम से दोस्ती कर ली|

Friday 1 June 2018

जुबां

उसकी जुबां बोलूँ या अपने दिल ही के जज़्बात कहूँ
जीवन के इस दरिया में इस पार रहूँ या उस पार रहूँ|

इज्जत

इज्जत करते-करते उनकी हरेक बात का 
बेइज्जत हो गए हम अपनी ही निगाहों में|