Wednesday 30 December 2015

फ़ौलादी इरादे

जो पत्थरों को देख कर हथौड़ा छोड़ देते हैं
वे पत्थरों से नहीं बल्कि खुद से हार जाते हैं
जिन्होंने तेज करके धार प्रहार नहीं छोड़ा
उनके ही फ़ौलादी इरादों से चट्टान टूट जाते हैं|

सपना

बचपन में सपना था 
आसमान छूने का|

जवानी में सपना था
जिंदगी बदलने का|

और
बुढ़ापे में
जीवन एक सपना ही है|

Friday 20 November 2015

सरकार

चुनाव जनता जिताती है कार्य कार्पोरेट का करते हैं
हम जनता के सपने को कार्पोरेट के हांथों बेच देते हैं|

Thursday 19 November 2015

बेवफा जिंदगी

गुमराह मुहब्बत की कहानियों सी है उसकी जिंदगी
जब वक्त वफ़ा करता है तो जिन्दगी बेवफा हो जाती है|

Sunday 15 November 2015

वैचारिक गुलामी

वैचारिक गुलामों 
की कोई अपनी भाषा नहीं होती
वैचारिक गुलाम
भेंड़ की तरह
अंध भक्ति
के राग अलापते हैं
और चाहे-अनचाहे
अपने मालिक की
मूर्खता के शिकार
हो जाते हैं |

Wednesday 11 November 2015

एक नन्हीं सी चिड़िया

एक नन्हीं सी चिड़िया थी
तुम सी
डरती सी
घबराती सी
एक नन्हीं सी चिड़िया थी |

कांप जाते थे उसके भी पांव
जैसे सिहर जाती हो तुम
अनहोनी पर|

पर रुकते कहाँ थे
नन्हीं चिड़िया के कदम
जैसे तुम चलती रहती हो
अनथक|

कोई खास वजह थी
जीने की
नन्हीं चिड़िया के जीवन में
तुम्हारी ही तरह|

तुम्हारी ही तरह
दर्द से गहरा रिश्ता था
नन्हीं चिड़िया का भी|

घायल थी नन्हीं चिड़िया
पर लड़खड़ाकर चलती थी
तुम्हारी ही तरह
अपने वजूद के लिए|

घनघोर आँधियों में भी
नन्हीं चिड़िया को
हौसला देते थे
उसके अपने ही पंख
ऊँची उड़ानों का
तुम्हारी ही तरह|
तुम्हारी ही तरह
नन्हीं चिड़िया
देख रही है जग को
अपनी कातर आँखों से
और हँस रही है जग पर
जैसे जग हँसता है उस पर|

Tuesday 10 November 2015

नफ़रत

नफ़रत सिर्फ
आतंकी नहीं फैलाते
नफ़रत फ़ैलाते हैं
लोलुप नेता
नफ़रत फैलाते हैं
बिके हुए बुद्धिजीवी
अपने स्वार्थ के लिए
ताकि ग़रीब को ग़रीब
रखकर
जाति को जाति में
बांटकर
लोगों की भावनाओं से
खेलकर
बेवजह के मुद्दों पर
गुमराह कर
देश को लुटा जा सके
जनता को छला जा सके
और
समाज के आखिरी आदमी
के हक़ पर
कब्ज़ा जमाया जा सके |

Saturday 31 October 2015

वफ़ा

जहर देकर जीने की दुआ करते हैं|
इस तरह वे मेरे साथ वफ़ा करते हैं||

Friday 30 October 2015

चेहरा

चेहरा कैसे बदलता है यह वक्त से पूछा करता था|
आज वक्त ने एक चेहरे को फिर से चाँद बना डाला|

Tuesday 27 October 2015

बंदगी

गुनाहगार भी हूँ तो तेरी नजर में हूँ मैं
गर बंदगी करूँ तो तेरी नजर बन जाऊं|

Friday 23 October 2015

चाहत

यकीन मानो मेरे दोस्त असर मेरी चाहत का है|
मै जिस पत्थर को चाहता हूँ देवता बना देता हूँ|

Monday 5 October 2015

कारवां

कब तक बेवजह रोकोगे मेरे कारवां को तुम
इक दिन जिंदगी ही तुम्हें रुकने नहीं देगी|

Sunday 4 October 2015

कमजोरी

कोई कमी तो न थी तुम्हारे बिना
अब तुम मेरी कमजोरी बन गई हो|

कारवां

जिसे सोचा था मंजर वह मुक्कदर निकल गया
मेरी राह का हर कारवां मंजिल तक पहुँच गया|

Tuesday 29 September 2015

पूछो

तुम पूछो न पूछो दिल की बात
मैं पूछता हूँ कि पूछते क्यों हो?

Friday 25 September 2015

जीवन संघर्ष

दिल को इक
संबल चाहिए
जीने के लिए|

इक राह चाहिए
मंजिल तक
पहुँचने के लिए|

इक
छत चाहिए
बसर करने के लिए|

जिंदगी में
'चाहने' और 'होने'
का जो फर्क है

वही जीवन संघर्ष है|

Sunday 20 September 2015

आत्म चेतना

ठहर सा गया हूँ मैं
या कि ठहर गई है
वो आत्म चेतना
जो आँखों में आंसू
दिल के दर्द को
देख सो नहीं पाती थी|

कहीं सचमुच
अँधेरे में तो नहीं
खो गया हूँ मैं
जहाँ जिंदगी
उजाले की
मोहताज भी नहीं रही|

वो आवाजें
जो गूंजती थीं
आसमानों तक
वक्त के साथ
खो गई हैं मुझमें|

सारी रात
टकटकी लगाकर
अँधेरी रात से
नजरें मिलाने वाली
आँखें
आखिर क्यों
भूल गईं हैं
उन सपनों को
जिसके बिना
जीवन का कोई मकसद
नहीं था|

मजबूरियां
अब नहीं हैं
और नहीं है
वो आग
जिसने जिंदा रखा था मुझे |

अब जो है
वो ठहरा हुआ जल है
जो खूबसूरत तो है
पर बेमानी है
धोखा है उन उसूलों का
जिसे हासिल किया था
मैंने अपना सबकुछ खोकर|

Friday 18 September 2015

मानवता

अजीब सा शख्स रहता है मुझमें
कि जितना मेरे शब्दों का
गला घोंटते हैं बेरहम
उतना ही मेरे शब्द
फौलादी बनकर
फिर-फिर छा जाते हैं अंतर्मन पर|

दमन के हर कुचक्र से
ऊपर उठता जाता हूँ मैं
क्योंकि मैं जानता हूँ कि
बौनापन होना
एक बरगद की मौत हो जाना है|

जुल्म से हारती नहीं है
जिजीविषा
मेरे दर्द कुरेदते रहते हैं मुझे
शब्दों का धार बनकर|

छुपा कर रखता हूँ
थोड़ी सी आशा
दिल में
ताकि पत्थर दिल होने से
बचा सकूँ खुद को
इस अमानवीय दुनिया में|

बेशक जकड़ दिए गए हों पांव
वक्त के जज्बातों से
मैं सैलाब को अपने
समंदर बनाता जाता हूँ|

चाहता हूँ एक समंदर
तुममें भी हो गरजता हुआ
देता हुआ माकूल जवाब
हर इक जुर्म को
ताकि बची रहे मासूमियत

बची रहे मानवता |

Saturday 12 September 2015

अंतहीन प्यास

शब्द खो चुके हैं अपना अर्थ
या कि अर्थहीन हो गई हैं संवेदनाएं


दर्द भरे स्वर खो चुके हैं अपना कंठ
या कि दफ्न कर दिया गया है ईमान को     


अतिशय शोर से थरथराने लगी है धरती
या कि भय ने प्रेम को विषाक्त कर दिया है


जंग जीतने की हताशा फैली है हर कहीं  
या कि विवश हो गई है मनुष्यता?


विकास के अध नंगेपन में खोई है दुनिया
या कि सिसक रही है सभ्यता

नफ़रत से धधकती धरती में बची है
सिर्फ अंतहीन प्यास
पत्थर हो जाने की
अमिट हो जाने की| 

Tuesday 8 September 2015

आँखें

आँखें जब देखती हैं भूख
तब चुप रहती हैं|

आँखें जब देखती हैं बेबसी
तब लाचार बन जाती हैं|

आँखें जब देखती हैं अन्याय
तब सब सह जाती हैं|

आँखें जब देखती हैं दर्द
तब कठोर हो जाती हैं|

आँखें दुनिया हो गई हैं
खोखली,संवेदनहीन
स्मृतिहीन |

आँखों के सपने
बूढ़े हो गए हैं
इस इंतजार में कि
घोर कालिमा से घिरी रात का
उजास कहीं हो|

Tuesday 4 August 2015

जख्म

जख्म भी दिल को सुकून देता है|
गर जीने का अंदाज जुदा हो|

दिल

दिल भी अब दुकानदार हो गया है|
हर बात पे सौदा किया करता है|

Saturday 18 July 2015

शिद्दत

बहुत दिनों के बाद खुद में देखा है तुम्हें
तुम्हें और भी शिद्दत से चाहने लगा हूँ मैं| 

Thursday 16 July 2015

प्रेम

सांस की तरह है 
प्रेम
बेशर्त बेपनाह
दिल की गहराईयों में उतरता हुआ 
हर वक्त हर पल
जिंदगी के लिए।

मेरा मन

मेरा मन
मंदिर है
मस्जिद है
मदिरालय है|

मेरे मन में
अमन है
चैन है
शांति है |

क्योंकि
मेरे मन में
प्रेम है|

Sunday 12 July 2015

हिन्दू-मुस्लिम

सब मुस्लिम, मुस्लिम नहीं होते|
सब हिन्दू, हिन्दू नहीं होते||
कुछ मुस्लिम, हिंदू होते हैं |
कुछ हिन्दू, मुस्लिम होते हैं||
कुछ हिन्दू-मुस्लिम में खुदा होते हैं|
कुछ हिन्दू-मुस्लिम खुद भगवान होते हैं|
कुछ मुस्लिम मंदिर में सजदा करते हैं|
कुछ हिन्दू मस्जिद में दुआ मांगते हैं|

Monday 22 June 2015

हद से

घनघोर अँधेरे में बिखर ही गए सब संगी-साथी
मैंने अपने क़दमों को उजाले तक रुकने नहीं दिया|

आँधियों में उखड़ गए थे कई नामचीन पेड़-पौधे
मैंने कभी आँधियों को हद से बहकने नहीं दिया| 

उजाला

आँधियों से देखा गया नहीं मेरा उजाला
और आँधियों से ही रोशन हूँ मैं हर कहीं|

Tuesday 26 May 2015

खुदा

अपनी सांसों की खुशबू में उतर कर मेरी नजरों ने जाना 
कि फ़ना हो जाना है खुद पर और खुद का खुदा हो जाना|

Sunday 17 May 2015

सफ़र

जब से अपने गम पर मुस्कुराने लगा हूँ मैं
जिंदगी का सफ़र कुछ आसान हो गया है|

Wednesday 13 May 2015

गुलमोहर

गुलमोहर ने अपने साथी पौधों को नया विश्वास दे दिया |
कि झुलसती हुई टहनियों को भी जीने का आस दे दिया|

Sunday 10 May 2015

अमलतास

ज्यों-ज्यों बढ़ने लगती है मेरे जीवन में धूप
दिल में कहीं अमलतास पनपने लगता है|

Saturday 9 May 2015

बेटियां

बेटियां हैं तो जीने की आस है |
बेटियां हीं खोया हुआ विश्वास हैं|

बेटियों के पास सुनहरे सपने हैं|
बेटियों के लिए हर रिश्ते अपने हैं|

बेटियों के दिल में सिर्फ प्रेम की चाहत है|
बेटियां गर्भ में मारे जाने से बड़ी आहत हैं|

बेटियों ने घर के हर गम को ख़ुशी में बदल दिया है|
बेटियों ने बिखरते रिश्ते को भी नया संबल दिया है|

बेटियों के सब खिलौने मुस्कुरा कर कहते हैं
मम्मी-पापा आप सदा मेरे दिल में रहते हैं| 

Tuesday 10 March 2015

नफ़रत

बहुत नफ़रत फैला दिया है किसी ने इस शहर में
चलो साथ चलें कि ग़मगीन हवाएं साँस ले सकें|  

Wednesday 11 February 2015

मंजिल

जो दिल ठहर जाए इक मंजिल पर तो बेमानी होगी|
मेरे राह की हरेक मंजिल नए मंजिल का पता देती है|

Saturday 24 January 2015

मुर्दा यादें

मुर्दा यादें कंधे को कमजोर करती चली गईं
और वक्त के पाँव कब्रगाह तक पहुँच गए|

उजाले

उजाले में अक्सर अँधेरे को भूल जाते हैं हम
और अँधेरे में उजाले बहुत याद आते हैं| 

कौवा

वह वक्त बीत गया जब कौवा बगुला न बन पाने पर शर्मिंदा थे
अब तो कौवा ही बगुले के वेश में कौवों पर कीचड़ उछालते हैं|

Sunday 18 January 2015

अकेले

आज साथ रह कर भी बहुत अकेले रहे हम
आज खुद को हम फिर माफ़ नहीं कर पाए |

देवता

जिस पत्थर को पूज कर देवता बना दिया हमने
उस देवता के लिए अपनी जान गवां दिया हमने|

जहर

जहर में भी शहद सी मिठास देखी मैंने
दिल में जालिमों के जज्बात देखी मैंने| 

गुमराह

इतने हुए गुमराह कि राह मिल गए
हर एक सवाल के जवाब मिल गए |

दिल्ली

दिल्ली पर जो राज करता है उम्मीदें तोड़ देता है
स्वर्ग का ख्वाब दिखाकर सड़क पर छोड़ देता है|

कशिश

कुछ तो है उनकी कशिश में जानते हैं सब
कि वे दिल और महफ़िल दोनों लूट लेते हैं|

प्यार

आदत है हमें प्यार न करें तो क्या करें
तुमने भी तो अपनी बेवफाई नहीं छोड़ी|

वक्त

चाँद-सितारों से प्यार पाने के लिए तो कभी नहीं ठहरा मैं
फिर तुम्हारी मोहब्बत के लिए ही क्यों ठहर गया है वक्त 

Friday 16 January 2015

अतीत

अतीत का अर्थ नहीं होता पर सालता क्यों है?
दिल गुमनाम चेहरे में नए अर्थ ढूंढ़ता क्यों है?

Tuesday 13 January 2015

नजरिया

जीवन एक खूबसूरत नजरिया भी है दोस्तों
कभी नजरिया बदलने से ही वक्त बदल जाते हैं|

Monday 12 January 2015

सांस

उम्र भर थामे रहे अपनी सांसों को हम
और सांसों ने ही इक दिन साथ छोड़ दिया|

Saturday 10 January 2015

मुसाफिर

वक्त के दरिया में बहने वाले मुसाफिर ने
खुद को आज और  कल की झंझटों में बाँट रखा है|

आरजू

खुद की आरजू में ही कुछ कह न सके हम
यूँ तो हमने मन्नतों का संसार सजा रखा है|

Friday 9 January 2015

वजूद

उम्र भर कमतर आंकते रहे वक्त के जिस पैमाने से हम
उस वक्त के पैमाने ने ही जीने की नई वजूद दे दी है|

Thursday 8 January 2015

बादशाह

स्वप्न तो आजाद हो वक्त कि हर इक गुलामी से
खुद का बादशाह बने इक लंबा अरसा बीत गया है| 

Wednesday 7 January 2015

देवता

इस कदर न आजमाओ कि टूटकर बिखर जाऊं मैं
तुम्हें उम्र भर अपनी नजरों में तराशना चाहता हूँ मैं|

Tuesday 6 January 2015

नफ़रत

धर्म की दूकान से कर रहे हैं वे नफ़रत का व्यापार
वे चाहते हैं सिर्फ ख़त्म करना इंसानियत और प्यार|

नन्हा पौधा

ऐ आँधियों जरा रहम तो करो दो पल के लिए
इक नन्हा पौधा फिर मुस्कुराना चाहता है|

जुर्म

दुःख है कि लूट लिए गए वे सरेआम
जुर्म सिर्फ इतना था कि आँखें बंद थीं |

Monday 5 January 2015

पेड़

जो पेड़ वक्त की आँधियों में उखड़ जाते हैं
उस पेड़ के बाशिंदे भी बेवक्त बिखर जाते हैं| 

Saturday 3 January 2015

कहा-अनकहा

सबकुछ अनकहा रह गया जो भी कहना चाहा तुम्हें
जो कहा वो सब गुम हो गए तुम्हारे मासूम सवालों में|

आत्म द्वीप

गिरने की परवाह कहाँ अब आगे बढ़ने की फ़िक्र है मुझे
घनघोर अँधेरे में ही आत्म द्वीप रोशन करता है मुझे| 

Thursday 1 January 2015

हर एक गूंज

शोषित जन की आवाज अगर मुकम्मल बन जाए
तो उसकी हर एक गूंज से पर्वत भी समंदर बन जाए|