Friday 8 May 2020

मजदूर

मैं मजदूर हूँ
मैं गली,चौक-चौराहा,सड़क
बस से लेकर रेल तक
राशन की दुकान से
राहत की अनगिनत कतार में हूँ
मैं मजदूर हूँ।

मेरे पैर दुनिया की तरह कठोर हो गए हैं
और कंधे देश की तरह मजबूत
जिस पर ढो सकता हूँ मैं कर्ज का बोझ
बदनामी का दंश लिए चल सकता हूँ मैं
पशुओं की तरह
सैकड़ों मील।

मुझ पर तरस खाने वाले
खा जाते हैं अन्न भंडार
देश के भाग्य की तरह
मेरी भी किस्मत नहीं बदलती
बदलती है सिर्फ तस्वीर
सफ़ेद पन्नों पर
खुशहाल भारत की।

मैं अन्न खाकर नहीं
वादे खाकर जीता हूँ
सूखी अंतड़ियों में
देश की इज्जत पचाता हूँ
तिरंगा हाँथ में लिए
जनपथ से राजपथ तक
लहूलुहान होता रहता हूँ।

लालकिले की प्राचीर से मैं ही गूंजता हूँ
मैं ही अनसुना रह जाता हूँ संसद में
मेरे ही सपने बेचकर
महलों में उगाई जाती हैं रोटियां
मैं ही बासी रोटी की तरह
फेंक दिया जाता हूँ कूड़ेदान में
झुग्गी-झोपड़ी,मलिन बस्तियों में
मैं ही अपराध की तरह पाया जाता हूँ
मैं ही मतदान में वोट बन निकलता हूँ
मैं ही राजकोषीय घाटे की तरह बढ़ता हूँ
मैं ही देश की साख की तरह गिरता हूँ
खेतों में मैं ही खून से पौधों को सींचता हूँ
मैं ही जमीन से उखड़ दर-बदर भटकता हूँ।

मेरे लिए यह देश और मैं देश के लिए
एक असहनीय पीड़ा हूँ
मैं असहनीय पीड़ा सहकर भी चुप हूँ
मैं मजदूर हूँ।