Friday 24 August 2018

एहसास

इतनी मोहब्बत दिखाई चाहने वालों ने मरने के बाद
कि एहसास हो गया होता तो वे कबके मर गए होते।

Thursday 23 August 2018

किताब

किताबों ने पढ़ाया प्रेम 
और हम नफ़रत सीख गए|

किताबों ने सिखाई संवेदनशीलता 
और हम कसाई बन गए|

अब दुनिया की भीड़ में 
खुद को खोकर खड़ा हूँ 
स्तब्ध |

सीखा हुआ खोने के लिए 
खोया हुआ पाने के लिए|
 
तिलांजलि देने के लिए 
उन अर्थों को 
जो प्रेम को नफरत 
और संवेदनशीलता को कसाई 
पढ़ना सिखा गए|

Tuesday 21 August 2018

बुजदिली

बेख़ौफ़ हाँथों द्वारा
नंगा कर देने से
स्त्री नहीं
सोच नंगी हो जाती है
समाज की।

वो व्यवस्था नंगी हो जाती है
जिसने शपथ ली है
सुशासन की।

वो मंशा
नंगी हो जाती है
जो फंसी हैं 
बेवजह के कुतर्कों में|

वो आंखें नंगी हो जाती है
जो स्वाद की तरह परोसती है
खबरों को।

वो मर्यादा नंगी हो जाती है
जिसके आवरण में
अनावृत हो गई है स्त्री।

वो स्त्री नंगी हो जाती है
जिसने आँख पर
पट्टी बाँध रखी है   
भरी अदालत में|

वो शिक्षा नंगी हो जाती है
जो सिखाती है
यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र देवता|

वो नियत नंगी हो जाती है
जो हैवानियत से भरी है
इबादत के बाद भी|

हम सब नंगे हो जाते हैं
अपनी-अपनी बुजदिली में|

दूरी

मोहब्बत की बारिश में नफ़रत न धुल न जाए कहीं
इसलिए भी नज़दीक रहकर दूरी बना रखी है उसने।

Friday 17 August 2018

बग़ावत

वे भी आवाज उठाने लगे हैं 
जो उपजाते हैं अन्न 
जो भूखे सो जाने को विवश हैं 
जिनके आँगन में जलता है 
चाँद का दीया 
जिनके बच्चे दम तोड़ देते हैं 
झाड़-फूंक होते-होते।

जो डाकिया को ही समझते हैं
सबसे बड़ा बाबू 
जिन्होंने जीवन के सिवा 
पढ़ा ही नहीं है कोई पाठ
जो जानते ही नहीं हैं
भूख से इतर दुनिया
जो बस जानते हैं
पसीने से धरती सींचना 
उम्मीदों की फसल बोना
और दाने-दाने के लिए 
मोहताज हो जाना।

आवाज उठाने वाले
एक दिन भूख के ख़िलाफ़
बग़ावत कर देंगे
फांस देंगे शोषण की गर्दन
भूख की आग में 
राख हो जाएंगी तिजोरियां
एक-एक कर मारे जाएंगे
वे सभी जिन्होंने छीन रखा है
उनसे मनुष्य होने का हक
वे भी जिनकी आत्मा मर गई है
और वे भी जो रहनुमा हो गए हैं
हुकूमत के।

Tuesday 14 August 2018

जज़्बात

आजाद हो जाऊं काश मन की जंजीरों से
बहुत बांध रखा है कमबख्त जज्बातों ने।

फ़ितरत

मेरी किस्मत थी,तुम्हें याद न करता तो और क्या करता।
तुम्हारी फ़ितरत थी,तुमने सब याद रखा मुझे भुलाकर।।

Sunday 5 August 2018

नौकरी की तलाश

अपने घर-परिवार को
दो रोटी खिलाने के लिए
माता-पिता के छोटे से सपने को
साकार करने के लिए
आसपास के माहौल में
खुद की उम्मीद को
जिंदा रखने के लिए
वर्षों की तंगहाली
अपार कठिनाइयों के बावजूद
एक अदद नौकरी की
अनवरत तलाश जारी रहती है।

इस अधूरी तलाश में
अधूरा रह जाता है जीवन भी
बहन की शादी भी
माँ का इलाज भी
पिता की दवाई भी
बच्चों की फीस भी
पत्नी के सपने भी
बेरोजगारी के दंश में
बेचैन रहती है आत्मा भी।

नौकरी की तलाश में
शहर दर शहर भटकते हुए
काम चाहने वाले हाँथ
इस कदर बेबस हो जाते हैं कि
अपने गले में रस्सी फांस
पेट की भूख को शांत कर देते हैं
और दम तोड़ती प्रतिभाओं का
यह सरोकार भी
साजिश लगने लगता है
सरकारों को
बरसाई जाती हैं लाठियाँ
वाजिब हक मांगने पर।

नौकरी के इस व्यापार में
अपनी ज़मीर को
जिंदा रखते हुए
बेरोजगार
आज़ाद देश में
गुलामों की तरह दौड़ते रहते हैं
अंतहीन अंधी दौड़
एक अदद नौकरीे की तलाश में।

Wednesday 1 August 2018

एक अकेली स्त्री होना

एक अकेली स्त्री होना
हैवानियत भरी नजरों से
खुद को बचाने के लिए
अपनी अंतरात्मा को मार देना है
गूंगी आवाज में चीखना
और बाहर चुप हो जाना है|

एक अकेली स्त्री होना
वीभत्स मानसिकता से
खुद को महफूज बनाए रखने का
ख्वाब बचाए रखना है
अपनी बेगुनाही के बाद भी
बेशर्म सवालों से
शर्मसार होते रहना है
दरिंदगी से गुजरने के बाद भी
दरिंदों के हमदर्द धृतराष्ट्रों से
न्याय की उम्मीद बचाए रखना है।

एक अकेली स्त्री होना
बेवजह की बंदिशों में बंध जाना है
मौत के मुँह में समा चुकी
मासूमियत को
बेबस आंखों से देखते रह जाना है
आसमान की ऊंचाई को छूने की चाहत लिए
बंद खिड़कियों में दम घुट जाना है|

एक अकेली स्त्री होना
समाज की नज़र में
नुमाइश की वस्तु बन जाना है
भद्दी गालियों, चुटकुलों में तब्दील हो
उपहास का पात्र बन जाना है
बेख़ौफ़ हाँथों के लिए
एक खिलौना बन जाना है
अधिकार,शोषण,अत्याचार के
बड़े-बड़े भाषणों के बाद
मनोरंजन का साधन बन जाना है।

एक अकेली स्त्री होना
अंतहीन समझौता हो जाना है
वक्त को कसकर मुट्ठी में दबाए हुए
जिंदगी के कठोर फैसले से गुजर जाना है।

एक अकेली स्त्री होना
अंततः सीता हो जाना है।