Friday 29 December 2017

मैं प्रेम करता हूँ

मैं प्रेम करता हूँ
अपनी अंतहीन उदासियों से 
अपनी घुप्प चुप्पियों से 
अपने हर उस ख़ामोश लम्हे से 
जिसमें मैं खुद को भूल गया हूँ
सिर्फ तुम्हें याद रखने के लिए ।

मैं प्रेम करता हूँ
प्रेम की परिभाषा से परे
तुम्हारे समयातीत एहसास को
अक्सर बेख़बर हो पढ़ता हूँ 
तुम्हारी उदास मुस्कुराहटों को 
हथेलियों पर थामे हुए तुम्हारे 
आँसुओं में देखता हूँ भावों का समंदर
और डूब जाता हूँ अपने अंदर ही।

मैं प्रेम करता हूँ
अपने उन भावों को व्यक्त करने के लिए
जो तुम्हें कभी अर्पित ही नहीं हो पाए
अव्यक्त भावों की गठरी लिए
भटकता ही रहता हूँ शब्दों के लिए
और निःशब्द हो जाता हूँ तुम्हारे सामने।

मैं प्रेम करता हूँ
यह जानते हुए भी कि 
जिंदगी की जिम्मेदारियों के बीच
अक्सर बेबस हो जाता है प्रेम
तुम्हारी ख़ामोश नज़रों में रहकर भी
अजनबी बने रहने के लिए 
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।

मैं प्रेम करता हूँ
दुनिया की तमाम कोशिशों के बाद भी
दिल से मिटा नहीं पाने वाली 
प्रेम की उस ताकत को बचाए रखने के लिए
जिसकी वजह से 
वक्त के घनघोर अंधेरे में भी
पत्थर दिल होने से बच पाया हूँ मैं।

मैं प्रेम करता हूँ
अपने अटूट विश्वास को बचाए रखने के लिए
ताकि प्रेम के पतझड़ में भी
बचा रहे प्रेम
संबंधों की मरुभूमि में भी
पनपता रहे प्रेम
प्रेम का पनपना ही
दुनिया का संवेदनशील हो जाना है
तुम्हारी ही तरह।

मैं प्रेम करता हूँ
प्रेम के सम्मान को 
प्रेम के अपने प्रतिदान को
प्रेम की निजता को
अपनी अपूर्णता के साथ भी
तुम्हारी पूर्णता के लिए।

मैं प्रेम करता हूँ
प्रेम की आत्मशक्ति से
प्रेम को प्रतिष्ठित करने के लिए
प्रेम को प्रेम की तरह समझने के लिए
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
प्रेम का इजहार किए बिना ही
आजीवन प्रेम का वरदान पाने के लिए
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
प्रेम की पूर्ण अनुभूति के साथ
अपने निश्चल प्रेम को 
अपने अंतरतम में प्रणाम करता हूँ
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।

Wednesday 27 December 2017

ख़ुदा

जिसे कह सकूँ मैं अपना वो ख़ुदा भी नहीं है
काफ़िरों ने खुदा को भी हथियार बना डाला।

Tuesday 19 December 2017

वफ़ा

अक्सर अधूरा ही रखता हूँ मैं खुद से किया वादा भी।
तुम्हारी ही तरह अब मैं खुद से भी वफ़ा नहीं करता।

Saturday 2 December 2017

बोझिल पंख

पिंजरे के पक्षी
पिंजरे की सलाखों से
आकाश की असीम संभावनाओं को
कभी देख ही नहीं पाते
और असमय ही खो देते हैं
साहस ऊँची उड़ानों का
बिना पंख फैलाए ही।

पिंजरे के पक्षी
चारों पहर खौफ़ में जीते हैं
खौफ़ से ही सीखते हैं
हर ज़ुल्म सहन कर लेना
चुपचाप दाना चुगना और
पंख समेट सो जाना।

पिंजरे के पक्षी
सहम जाते हैं
ऊँची उड़ानों का
सपना देखने पर
और अपनी चीख़ से
पिंजरे के ख़िलाफ़ उठने वाली
हर एक आवाज को दबा देते हैं।

पिंजरे के पक्षी
गुलाम मानसिकता के हो जाते हैं
आकाश की हर एक आज़ादी को
हर एक सच्चाई को
जबरन झूठा ठहराते हैं
अपनी जान की कीमत देकर भी।

पिंजरे के पक्षी
बेबस हो जाते हैं
पिंजरे से कभी उड़ना नहीं चाहते
मुट्ठी भर दाने के लिए
खेत-खलिहानों में भटकना नहीं चाहते
मिहनत कर घोंसला बनाना नहीं चाहते
पिंजरे के पक्षी
खो चुके साहस के साथ
खो देना चाहते हैं
अपने बोझिल पंखों को भी।

पिंजरे के पक्षी
अपनी कातर आँखों से देखते हैं
दूर आकाश की ओर
और दम तोड़ देते हैं
अपनी ताकत को जाने बिना ही
आकाश की असीम
ऊंचाइयों को छुए बिना ही
गुमनाम मौत के शिकार हो जाते है।