आत्म द्वीप
Wednesday, 31 December 2014
प्यार
जितना प्यार दिया है कुदरत ने उतना ही तरस रहे हैं हम
कोई कैसे समझाए कि नफरत से किस कदर तड़प रहे हैं हम |
खामोश शहर
अजीब खामोश शहर है उदासियों से भरा हुआ
कोई तो आवाज उठाए कि फ़िजा बदल सके|
Monday, 29 December 2014
नजर
एक प्यार की नजर से जो उसको देख दी हमने
सोई हुई इंसानियत को नई जिंदगी दे दी हमने|
सियासी रंग
गरीबों के दर्द पर हँसने वालों को अमीरों का गुनाह भी दिखाई नहीं देता
सियासी रंग कुछ ऐसा है कि बेगुनाहों का कत्लेआम भी दिखाई नहीं देता|
Sunday, 28 December 2014
दिल को
कुछ इस तरह से उसने अपने दिल को छोटा कर लिया
जरा सी बात को शिद्दत से अपने दरम्या बड़ा कर लिया|
Saturday, 27 December 2014
बेघर
अपार संभावनाओं को हाँथ में लिए निकले थे घर से
ऐसी क़ाबलियत हासिल की हमने कि बेघर हो गए|
Thursday, 25 December 2014
चुनौतियाँ
जितनी चुनौतियाँ तुमने मुझे दी हैं ऐ खुदा
उससे ज्यादा तो वक्त ने मुझे हौसला दिया है|
झूठ की महफ़िल
झूठ की महफ़िल में सरेआम सच को बदनाम होते देखा है|
बादलों को भी हमने गुमान में सूरज पे हँसते हुए देखा है|
नायाब चेहरे
नायाब चेहरे जो बिक गए हैं बाजार में वक्त के हांथो
वो ही चेहरे हमें सरेआम ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं|
Wednesday, 24 December 2014
मंजिल
पांव तले जमीं को देख कर चले तो मंजिल तक पहुँच गए
जो मंजिल को देख कर चले तो रास्ते में थक कर बैठ गए|
गुमनाम अँधेरे
जब से खोली है हमने घर की हरेक खिड़कियाँ
घर के गुमनाम अँधेरे भी उजाले से भर गए हैं|
Tuesday, 16 December 2014
गुमराह
गिरने का गम नहीं है मेरे ऐ ख़ुदा
डर है कि कहीं गुमराह न हो जाऊं|
खुद को
खुद को पाने में ही एक उम्र निकल गई
जो जिंदगी बची है वो मुक्कमल तो नहीं|
गुनाहगार
मासूमों के क़त्ल के गुनाहगार थोड़े हम सब भी हैं|
सियासी रंग जितना उनमें है कमोबेश हममें भी है|
Wednesday, 10 December 2014
रोटी
धर्म बिकने लगा है अब चौक-चौराहे पर
रोटी धर्म का गुनहगार हो गई है|
Tuesday, 9 December 2014
मेरा चेहरा
मेरे चेहरे में बसा है मेरे अपनों का प्यार
मेरा चेहरा मेरे अपनों की याद दिलाता है|
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