Sunday 3 January 2016

भरोसा नहीं होता है..

कैसे कहूँ कि तेरे धूप से उजाला नहीं होता है
भूखे-नंगों के इस शहर में सवेरा नहीं होता है
सारी की सारी हवाएं कैद हैं एक खिड़की में
सरकार कोई भी हो अब भरोसा नहीं होता है|

No comments:

Post a Comment