कैसे कहूँ कि तेरे धूप से उजाला नहीं होता है
भूखे-नंगों के इस शहर में सवेरा नहीं होता है
सारी की सारी हवाएं कैद हैं एक खिड़की में
सरकार कोई भी हो अब भरोसा नहीं होता है|
भूखे-नंगों के इस शहर में सवेरा नहीं होता है
सारी की सारी हवाएं कैद हैं एक खिड़की में
सरकार कोई भी हो अब भरोसा नहीं होता है|
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