Tuesday 26 February 2019

कविता

आजकल नहीं लिख रहा हूँ
कोई कविता
नहीं व्यक्त कर रहा हूँ
कोई विचार
जैसे कि विचारों ने
फ़ैसला कर लिया हो
कि अब नहीं होना है
किसी के ख़िलाफ़।

वक्त के बहरेपन में
मुझमें मर रहीं हैं
कविताएं
और एक कवि में
कविता का मर जाना
हमारे समय का
खौफ़नाक सच है
और सच यह भी है कि
ज़ुबान की खरीद-फरोख्त में
जो कवि बच गए हैं
वो ही बहिष्कृत हैं
कवि समाज से भी।

अधीर समय ने
एक कवि को
सुनने का धैर्य खो दिया है
धैर्य से सुने जाने लगे हैं
अकवि।

अब जबकि
अनसुने समय में बोलना
खुद को बेवज़ह साबित कर देना है
बोलने की
कोई मुकम्मल वजह तलाश रहा हूँ मैं
अंधेरे में
अंधेरे के ख़िलाफ़ होने के
नए मायने तलाश रहा हूँ मैं।

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