Wednesday, 23 November 2016

दुश्मन

इस देश को अब दुश्मनों की जरुरत नहीं
यह देश भरा पड़ा है आस्तीनों की साँपों से|

Tuesday, 22 November 2016

बेवफ़ा

जितने बेवफ़ा थे सब के सब अब वफ़ा कर रहे हैं|
जो एक दिल अजीज़ थे वही अब दगा कर रहे हैं|

चेहरा

अपना ही चेहरा अब अपरिचित सा लगने लगा है|
कि बदलते वक्त के साथ बहुत बदल सा गया हूँ मैं|

Sunday, 20 November 2016

कमी

हज़ार कमियों के साथ अपनाया है तुम्हें।
लाख तोड़ना चाहो नहीं तोड़ पाओगे हमें।

मशहूर

जब तक जिंदा थे थे कौन।
अब मर कर मशहूर हो गए ।

विषमता

विषमताओं के साथ 
अपनाना चाहता हूँ
खुद को
तुमको
सबको
ताकि
खोने से बच सकूँ
खुद को
तुमको
सबको।

राम बनना ही काफ़ी नहीं

राम बनना ही काफ़ी नहीं
वंचितों की रक्षा के लिए
हर एक रावण के ख़िलाफ़
मुस्तैदी से खड़ा होना भी जरूरी है।

सिर्फ हाँथों में अंगारे
लेकर चलने से क्या हासिल होगा?
इस डरावने अंधेरे के ख़िलाफ़
एक मुक्कमल मशाल जलाना भी जरूरी है।

सिमट गई हैं गरीबों की अंतड़ियां भूख से
अनगिनत भीख मांगते हाँथों को
अपनी ही खोई हुई जमीन पाने के लिए
एक दूसरे का हाँथ थामना भी जरूरी है।

मैं नहीं कहता कि
सब कुछ यूँ ही सहन करते जाओ साथी
सड़ी हुई इस व्यवस्था के खिलाफ
निर्णायक लड़ाई में लामबंद होना भी जरूरी है।

हम और तुम तो
एक मोहरा भर हैं हुक्मरानों का
बढ़ते अत्याचार को जमींदोज करने के लिए
हर एक कंठ को
प्रतिरोध की आवाज बुलंद करना भी जरूरी है।

आओ तुम भी साथ दो न मेरा
इस व्यवस्थागत महासमर में
तुम्हें अपनी अंतरात्मा को भी
अब एक नई धार देना भी जरूरी है।

गूंगे कहे जाओगे गर अब चुप रहे
बेबस, लाचार बने रहने का वक्त नहीं यह
तुम्हें ही उठाना है भार कंधे पर
तुम्हें अब अपनी ताकत दिखाना भी जरूरी है।

किसके भरोसे बैठे हो तुम अब तक
तुम्हें गुमराह कर
कुर्सी हथियाने वालों को
अब नीचे गिराना भी जरूरी है।

बदल दो हर एक तस्वीर अपने घर की
जो तुम्हें धोखा देती हो
शोषितों की तकदीर बदलने के लिए
तुम्हें एक नया इतिहास लिखना भी जरूरी है।

कब तक बंद रखोगे
खुद की ही तकदीर अपनी मुट्ठी में
उठो,जागो तुम्हें धूल समझने वाली हवाओं को
आंधी बन जगाना भी जरूरी है।

तुम्हारी ही जागीर है यह सब कुछ
तुम्हारा ही अपना वतन है
तुम्हारे ही विचारों में घर बनाए
काफ़िरों को भगाना भी जरूरी है।

गर चाहते हो शांति से जीना मेरे साथी
तो राम की तरह ही एक बार
खुद के रावण को मारना भी जरूरी है।
और गुजारिश भी है यह कि
हर एक रावण के खिलाफ लड़ते हुए
खुद को रावण बनने से बचाना भी जरूरी है।

सबूत

कातिल ही दे रहे हैं बेगुनाही का सबूत
यह घनघोर समय है स्याह उजाले का।

नफ़रत

बहुत नफ़रत नफ़ासत से सँजो रखा था दिल में 
और वक्त ने याद को तेरी मुहब्बत बना डाला।।

उसूल

सोचा था उतने बुरे नहीं होंगे साहब के उसूल
हैरत हूँ कि गिर चुके हैं वो अपनी नजरों में भी।

पिता

पिता को 
बचपन से महसूस करते हुए
उन्हें करीब से देखते - समझते हुए
कई एक वर्ष बीत गए
और अब
अनथक पिता
वृद्ध हो गए ।

पिता
अब और भी संजीदगी से
पढ़ाने लगे हैं बच्चों को
जिंदगी का पाठ
पिता को लगने लगा है कि
बच्चों को जीने की कला समझाना
खुद पुनर्जीवित हो जाना है।

पिता
बच्चों की मृदुल हँसी में
पाने लगे हैं खुद की मुस्कुराहट
बच्चों को आशीष देते हुए
पिता भावुक होने लगे हैं
असीम प्रेम लुटाने लगे हैं
अक्सर।

पिता
अब प्रगाढ़ संबंधों में
अनवरत खोजने लगे हैं अगाध प्रेम।

पिता
अब आत्मीय जनों की
शब्दों की चोट से
आहत होने लगे हैं
अंतहीन मन की गहराईयों तक
दर्द महसूस करने लगे हैं।

पिता
अब व्याकुल होने लगे हैं
हर एक त्यौहार पर
इंतजार करने लगे हैं
अपने सगे-संबंधियों का
ताकि घर को घर कहा जा सके।

पिता
घर के टूटने के सवालों पर
अंदर ही अंदर बिखरने लगे हैं
जिंदगी की इस बेहिसाब भागती
आपाधापी को ही
परिवार के टूटने की
वजह समझने लगे हैं।

पिता
अब बात-बात पर
रहने लगे हैं उदास
रात भर चिंता में
डूबने लगे हैं
पिता अब
किसी अनहोनी की
आशंका में जीने लगे हैं।

पिता
अब परिवार की खुशहाली के लिए
देवी-देवताओं से मनौती मांगने लगे हैं
मन ही मन बुदबुदाने लगे हैं मंत्र
पिता की आँखों में
अब अधूरे सपने
सूखने लगे हैं।

पिता
अपनी डायरी में
लिखने लगे हैं दुःख-दर्द
मन की व्यथाएं
मां संग बांटने लगे हैं
पिता अब
अनगिनत बीमारियों से जूझने लगे हैं।

अब मैं
पिता के गहरे सवालों को
उनकी असीम वेदना को
शिद्दत से महसूस करते हुए
श्रवण की तरह
पिता की जीवन यात्रा
का सहभागी बनने लगा हूँ
अश्रु - श्रद्धा पूरित 
नमन करने लगा हूँ|

दुश्मन

दुश्मनों से अभी तक लड़ना नहीं सीखा मैंने
अब भी प्यार करता हूँ और हार जाते हैं वो।