Sunday 20 November 2016

राम बनना ही काफ़ी नहीं

राम बनना ही काफ़ी नहीं
वंचितों की रक्षा के लिए
हर एक रावण के ख़िलाफ़
मुस्तैदी से खड़ा होना भी जरूरी है।

सिर्फ हाँथों में अंगारे
लेकर चलने से क्या हासिल होगा?
इस डरावने अंधेरे के ख़िलाफ़
एक मुक्कमल मशाल जलाना भी जरूरी है।

सिमट गई हैं गरीबों की अंतड़ियां भूख से
अनगिनत भीख मांगते हाँथों को
अपनी ही खोई हुई जमीन पाने के लिए
एक दूसरे का हाँथ थामना भी जरूरी है।

मैं नहीं कहता कि
सब कुछ यूँ ही सहन करते जाओ साथी
सड़ी हुई इस व्यवस्था के खिलाफ
निर्णायक लड़ाई में लामबंद होना भी जरूरी है।

हम और तुम तो
एक मोहरा भर हैं हुक्मरानों का
बढ़ते अत्याचार को जमींदोज करने के लिए
हर एक कंठ को
प्रतिरोध की आवाज बुलंद करना भी जरूरी है।

आओ तुम भी साथ दो न मेरा
इस व्यवस्थागत महासमर में
तुम्हें अपनी अंतरात्मा को भी
अब एक नई धार देना भी जरूरी है।

गूंगे कहे जाओगे गर अब चुप रहे
बेबस, लाचार बने रहने का वक्त नहीं यह
तुम्हें ही उठाना है भार कंधे पर
तुम्हें अब अपनी ताकत दिखाना भी जरूरी है।

किसके भरोसे बैठे हो तुम अब तक
तुम्हें गुमराह कर
कुर्सी हथियाने वालों को
अब नीचे गिराना भी जरूरी है।

बदल दो हर एक तस्वीर अपने घर की
जो तुम्हें धोखा देती हो
शोषितों की तकदीर बदलने के लिए
तुम्हें एक नया इतिहास लिखना भी जरूरी है।

कब तक बंद रखोगे
खुद की ही तकदीर अपनी मुट्ठी में
उठो,जागो तुम्हें धूल समझने वाली हवाओं को
आंधी बन जगाना भी जरूरी है।

तुम्हारी ही जागीर है यह सब कुछ
तुम्हारा ही अपना वतन है
तुम्हारे ही विचारों में घर बनाए
काफ़िरों को भगाना भी जरूरी है।

गर चाहते हो शांति से जीना मेरे साथी
तो राम की तरह ही एक बार
खुद के रावण को मारना भी जरूरी है।
और गुजारिश भी है यह कि
हर एक रावण के खिलाफ लड़ते हुए
खुद को रावण बनने से बचाना भी जरूरी है।

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