पिता को
बचपन से महसूस करते हुए
उन्हें करीब से देखते - समझते हुए
कई एक वर्ष बीत गए
और अब
अनथक पिता
वृद्ध हो गए ।
उन्हें करीब से देखते - समझते हुए
कई एक वर्ष बीत गए
और अब
अनथक पिता
वृद्ध हो गए ।
पिता
अब और भी संजीदगी से
पढ़ाने लगे हैं बच्चों को
जिंदगी का पाठ
पिता को लगने लगा है कि
बच्चों को जीने की कला समझाना
खुद पुनर्जीवित हो जाना है।
अब और भी संजीदगी से
पढ़ाने लगे हैं बच्चों को
जिंदगी का पाठ
पिता को लगने लगा है कि
बच्चों को जीने की कला समझाना
खुद पुनर्जीवित हो जाना है।
पिता
बच्चों की मृदुल हँसी में
पाने लगे हैं खुद की मुस्कुराहट
बच्चों को आशीष देते हुए
पिता भावुक होने लगे हैं
असीम प्रेम लुटाने लगे हैं
अक्सर।
बच्चों की मृदुल हँसी में
पाने लगे हैं खुद की मुस्कुराहट
बच्चों को आशीष देते हुए
पिता भावुक होने लगे हैं
असीम प्रेम लुटाने लगे हैं
अक्सर।
पिता
अब प्रगाढ़ संबंधों में
अनवरत खोजने लगे हैं अगाध प्रेम।
अब प्रगाढ़ संबंधों में
अनवरत खोजने लगे हैं अगाध प्रेम।
पिता
अब आत्मीय जनों की
शब्दों की चोट से
आहत होने लगे हैं
अंतहीन मन की गहराईयों तक
दर्द महसूस करने लगे हैं।
अब आत्मीय जनों की
शब्दों की चोट से
आहत होने लगे हैं
अंतहीन मन की गहराईयों तक
दर्द महसूस करने लगे हैं।
पिता
अब व्याकुल होने लगे हैं
हर एक त्यौहार पर
इंतजार करने लगे हैं
अपने सगे-संबंधियों का
ताकि घर को घर कहा जा सके।
अब व्याकुल होने लगे हैं
हर एक त्यौहार पर
इंतजार करने लगे हैं
अपने सगे-संबंधियों का
ताकि घर को घर कहा जा सके।
पिता
घर के टूटने के सवालों पर
अंदर ही अंदर बिखरने लगे हैं
जिंदगी की इस बेहिसाब भागती
आपाधापी को ही
परिवार के टूटने की
वजह समझने लगे हैं।
घर के टूटने के सवालों पर
अंदर ही अंदर बिखरने लगे हैं
जिंदगी की इस बेहिसाब भागती
आपाधापी को ही
परिवार के टूटने की
वजह समझने लगे हैं।
पिता
अब बात-बात पर
रहने लगे हैं उदास
रात भर चिंता में
डूबने लगे हैं
पिता अब
किसी अनहोनी की
आशंका में जीने लगे हैं।
अब बात-बात पर
रहने लगे हैं उदास
रात भर चिंता में
डूबने लगे हैं
पिता अब
किसी अनहोनी की
आशंका में जीने लगे हैं।
पिता
अब परिवार की खुशहाली के लिए
देवी-देवताओं से मनौती मांगने लगे हैं
मन ही मन बुदबुदाने लगे हैं मंत्र
पिता की आँखों में
अब अधूरे सपने
सूखने लगे हैं।
अब परिवार की खुशहाली के लिए
देवी-देवताओं से मनौती मांगने लगे हैं
मन ही मन बुदबुदाने लगे हैं मंत्र
पिता की आँखों में
अब अधूरे सपने
सूखने लगे हैं।
पिता
अपनी डायरी में
लिखने लगे हैं दुःख-दर्द
मन की व्यथाएं
मां संग बांटने लगे हैं
पिता अब
अनगिनत बीमारियों से जूझने लगे हैं।
अपनी डायरी में
लिखने लगे हैं दुःख-दर्द
मन की व्यथाएं
मां संग बांटने लगे हैं
पिता अब
अनगिनत बीमारियों से जूझने लगे हैं।
अब मैं
पिता के गहरे सवालों को
उनकी असीम वेदना को
शिद्दत से महसूस करते हुए
श्रवण की तरह
पिता की जीवन यात्रा
का सहभागी बनने लगा हूँ
पिता के गहरे सवालों को
उनकी असीम वेदना को
शिद्दत से महसूस करते हुए
श्रवण की तरह
पिता की जीवन यात्रा
का सहभागी बनने लगा हूँ
अश्रु - श्रद्धा पूरित
नमन करने लगा हूँ|
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