Wednesday 25 July 2018

आंखें

आँखें जब देखती हैं
भूख
तब चुप रहती हैं|

आँखें जब देखती हैं
बेबसी
तब लाचार बन जाती हैं|

आँखें जब देखती हैं
अन्याय
तब सब सह जाती हैं|

आँखें जब देखती हैं
दर्द
तब कठोर हो जाती हैं|

आँखें
दुनिया हो गई हैं
खोखली
संवेदनहीन
स्मृतिहीन |

आँखों के सपने
बूढ़े हो गए हैं
इस इंतजार में कि
घोर कालिमा से
घिरी रात का
उजास कहीं हो|

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