झूठ को झूठ कहूँगा तो
झूठ के हांथों
नुमाइश की वस्तु बना दिया जाऊँगा
लात-घूंसों, अपशब्दों से नवाजा जाऊँगा
सरेराह |
झूठ को झूठ कहूँगा तो
झूठ के हांथों हीं
मारा जाऊँगा
यक़ीनन एक दिन |
डर और आतंक से
सहमे हुए समय में
चुप रहना
फिर भी मुमकिन नहीं
मेरे लिए |
अपनी आवाज का
गला घोंटने से कहीं बेहतर है
जुबान
खींच ली जाए मेरी
सच की बुनियाद पर ही
और मेरी चीख
गूंजती रहे
वहशीपन के अंत होने तक |
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