Tuesday 23 October 2018

चीख


झूठ को झूठ कहूँगा तो
झूठ के हांथों
नुमाइश की वस्तु बना दिया जाऊँगा  
लात-घूंसों, अपशब्दों से नवाजा जाऊँगा
सरेराह |

झूठ को झूठ कहूँगा तो
झूठ के हांथों हीं
मारा जाऊँगा
यक़ीनन एक दिन |

डर और आतंक से
सहमे हुए समय में  
चुप रहना
फिर भी मुमकिन नहीं
मेरे लिए |

अपनी आवाज का
गला घोंटने से कहीं बेहतर है
जुबान
खींच ली जाए मेरी
सच की बुनियाद पर ही
और मेरी चीख
गूंजती रहे
वहशीपन के अंत होने तक |

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