Tuesday 8 September 2015

आँखें

आँखें जब देखती हैं भूख
तब चुप रहती हैं|

आँखें जब देखती हैं बेबसी
तब लाचार बन जाती हैं|

आँखें जब देखती हैं अन्याय
तब सब सह जाती हैं|

आँखें जब देखती हैं दर्द
तब कठोर हो जाती हैं|

आँखें दुनिया हो गई हैं
खोखली,संवेदनहीन
स्मृतिहीन |

आँखों के सपने
बूढ़े हो गए हैं
इस इंतजार में कि
घोर कालिमा से घिरी रात का
उजास कहीं हो|

No comments:

Post a Comment