आँखें जब देखती हैं भूख
तब चुप रहती हैं|
आँखें जब देखती हैं बेबसी
तब लाचार बन जाती हैं|
आँखें जब देखती हैं अन्याय
तब सब सह जाती हैं|
आँखें जब देखती हैं दर्द
तब कठोर हो जाती हैं|
आँखें दुनिया हो गई हैं
खोखली,संवेदनहीन
स्मृतिहीन |
आँखों के सपने
बूढ़े हो गए हैं
इस इंतजार में कि
घोर कालिमा से घिरी रात का
उजास कहीं हो|
तब चुप रहती हैं|
आँखें जब देखती हैं बेबसी
तब लाचार बन जाती हैं|
आँखें जब देखती हैं अन्याय
तब सब सह जाती हैं|
आँखें जब देखती हैं दर्द
तब कठोर हो जाती हैं|
आँखें दुनिया हो गई हैं
खोखली,संवेदनहीन
स्मृतिहीन |
आँखों के सपने
बूढ़े हो गए हैं
इस इंतजार में कि
घोर कालिमा से घिरी रात का
उजास कहीं हो|
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