Tuesday 11 July 2017

मनुष्यत्व

ऐसे समय में
जी रहे हैं
हम सभी
जहां सभी
अच्छी चीजों को
वक्त से पहले
विदा किया जाना है।

पक्षियों को तोड़कर
घोंसला
आसमान में
विलीन हो जाना है।

संबंधों के
पेड़ को
उखड़ जाना है
वक्त की आंधी में।

सूर्य को अस्त
हो जाना है
अंधेरे से डरकर।

रास्तों को
खो जाना है
मंजिल से पहले ही।

गिध्दों को
लाश की राजनीति
करते देखना है
या खुद गिद्द हो जाना है।

मासूमों के हाँथ में
किताब की जगह
थमा दिया जाना है
बंदूक।

गुनहगार की तरह
जीना है
स्त्री को
बेवजह।

भुला दिया जाना है
इतिहास को
गौरव को
आत्म उत्थान की
हर गाथा को।

खो देना है
पीढ़ियों को
बूढ़ी आँखों में
अपनों के
इंतजार के
हर सपने को
अमूल्य धरोहर को।

विदा हो जाना है
संस्कारों को
प्रेम को
परिहास को
क्षमा शक्ति की
संस्कृति को
संवेदना को
कविता को
और
कवि को भी।

भावना से
वस्तु बनते
कठोर युग में
जगह ही नहीं
बची है अब
मनुष्यत्व की।
                    

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