Friday 7 July 2017

सत्ताएं

सत्ताएं
बल से
छल से
लोभ से
खरीद लेती हैं
कलम को
हाँथ को
जुबां को
और
बिक जाती है
आत्मा भी
सोच भी
विचार भी।

इस प्रकार
सत्ताएं
इशारे पर
नाचने वाली
कठपुतलियाँ
तैयार करती हैं।

कठपुतलियाँ
दिखाती हैं
सुनहरे सपने
और
दम तोड़ देती है
मानवता।

ग़रीबी
अत्याचार
शोषण के प्रश्न
दबा दिए जाते हैं
जबरन
और
हत्या-आत्महत्या
बलात्कार
के सवाल पर भी
संवेदनहीन हो जाती हैं
सत्ताएं।

समाज के 
आखिरी आदमी
का नारा बुलंद करते-करते
चंद लोगों की जागीर
हो जाती हैं
सत्ताएं।

इस तरह
जन कल्याण की
अपार संभावनाओं के
वाबजूद
बेलगाम ताकत
और
दिशाहीन निर्णयों से
कलंकित
हो जाती हैं
सत्ताएं।
       

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