Monday 7 August 2017

चोट

माँ दर्द से कराह उठती है
जब बच्चों को लगती है
चोट
पिता आँसुओं को
चुपचाप पी जाते हैं।

चोट से
सिहर उठता है जब
बचपन
तब लिपट जाता है
माँ के कलेजे से
पिता के कंधे से
और
माँ की थपकियों से
पिता के फूँकने से
काफ़ूर हो जाता है
दर्द।

माँ की नजरें
जब कमजोर
होने लगती हैं
पिता
चलते-चलते
गिरने लगते हैं
जूझने लगते हैं
चोट से
तब बच्चे
पक्षियों की तरह
घोंसला छोड़
दूर कहीं बना लेते हैं
अपना आशियाना
और माता-पिता
रह जाते हैं
घर में अकेले
किसी पुराने सामान की तरह।

माता-पिता
समझते हैं
अजनबी शहर की
परेशानियां
और छुपा लेते हैं
बच्चों से
हर एक बातें
जो चोट पहुंचाती हैं
दिल को।

माता-पिता
अपने बच्चों के
वक्त के
मोहताज हो जाते हैं
और
बच्चे
अपनी जिंदगी की
परेशानियों में कैद।

माता-पिता
नहीं छोड़ पाते
अपने ख्यालात
पूजा-पाठ
रहन-सहन
खानपान के तौर-तरीके
और
बच्चे
शहर की
छोटी कोठरियों में
नहीं दे पाते
माता-पिता को
पाँव पसारने की
थोड़ी सी जगह।

इस तरह
अनगिनत चोटों से
असहनीय हो जाती है
माता-पिता की जिंदगी
और
जटायु की तरह
बेबस भी।

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