Tuesday 1 August 2017

हम चुप हैं

सड़क पर भटकता
न्याय
झंडे में तब्दील हो
अलग-अलग मोड़ पर खड़ा है|

उसे थामने वाले
हाँथ
बंधे हैं अलग-अलग सवालों से।

आम आदमी के
सरोकार
अब तय करते हैं संख्या बल|

मुद्दे
अपनी पहचान खो बैठे हैं
भूख और भ्रष्टाचार के प्रश्न
मजाक बन गए हैं
तंत्र में|

रहनुमा चाहते हैं
न्याय का अपना
पैमाना
ताकि सिर झुकाए खड़ी रहे
जनता
तीमारदारी में पूर्ववत
सब कुछ सहन करते हुए|

हासिये पर डाल दिए जाते हैं
आम आदमी के चुभते हुए सवाल
क्योंकि हम चुप हैं
हर एक अन्याय सह कर भी|

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