Tuesday 22 August 2017

रिश्ता

बहुत गम है उसे वह हर एक गम को सह लेता है।
झुककर ही सही वह हर एक रिश्ता निभा लेता है।

लगता है खुदा के घर पर भी मय्यत सी मायूसी है
खुशनुमा हमदर्द लोगों को वो हमसे छीन लेता है|

रोने की जरूरत नहीं रही अब मुलाजिम के सामने
लाचार लोगों का हक वह हँस कर ही हड़प लेता है।

कौन परवाह करता है अब साथ जीने एवं मरने की
जरा सी बात पर ही अब रिश्ता नया दर ढूंढ़ लेता है।

किसको फुर्सत है अब जो मिले, बैठे और बातें करे
दूर से खैरियत पूछकर ही वह फर्ज निभा लेता है।

भागती जिंदगी में इतना दर्द लेकर घूम रहे हैं लोग
कि दूसरे का दर्द देख वह अपना दिल थाम लेता है।

जिसके भरोसे चला था वह अपनी जिंदगी बदलने
बदलते वक्त में वही मुसाफ़िर रास्ता बदल लेता है।

इत्तेफाक से हर रोज ही मिलना होता है उससे पर
वह हर रोज मुस्कुरा कर दिल की बात छुपा लेता है।

सदियों इंतजार का जज्बा लिए बैठे रहे जिसके लिए
दूर देश में वही अपनों को छोड़ सुकून से रह लेता है।

हमेशा जिंदगी सिखाती ही रही नए-नए पाठ फिर भी
वह नए पाठ भूलकर पुरानी गलतियां दोहरा लेता है।

कब तक बेबस होकर यूँ ही तमाशबीन बने रहेंगे लोग
अब तो आए दिन खौफ भी सिर पर मंडरा लेता है।

बहुत धूप-छाँव है जीवन में मगर कोई करे भी तो क्या
हालात से हारकर भी कोई मौत को गले लगा लेता है।

चलो कोशिश करें फिर जिंदगी को नए सिरे से जीने की
समंदर भी तो मटमैले पानी को अपने में मिला लेता है।

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