Saturday 14 April 2018

विदा होती बेटियां

विदा हो जाती हैं
बेटियां
जैसे विदा हो जाती है
आंगन की धूप
सूना हो जाता है
घर-आंगन
चुप हो जाती हैं
मंदिर की घण्टियाँ
पिता निहारते रहते हैं द्वार
माँ सदमे से भर जाती है
विदा होती बेटियां
अपने पीछे
बहुत सारा दर्द छोड़ जाती हैं।

विदा होती बेटियां
अपने खिलौने के साथ ही
अपना बचपन छोड़ जाती हैं
अपने सपने संदूक में बंद कर
खुशी-खुशी चली जाती हैं
माँ से हर बात मनवाने वाली
बेटियां
माँ को ही मनाने लग जाती हैं
अपनी जिंदगी की
जिम्मेदारियों से बंध जाती हैं।

बेटियां
जब लौटती हैं
तो लौटा लाती हैं
खुशियां
ले आती हैं
ढ़ेर सारा प्यार
और
थोड़ा सा वक्त
थोड़े से वक्त में
सोए हुए मन को
जगा जाती हैं
बेटियां
उदास घर को
गुलज़ार कर जाती हैं।

विदा होती बेटियां
आंसुओं से
अतीत को सींच जाती हैं
शब्दों की मिठास से
रिश्तों को जोड़ जाती हैं
माता-पिता की आंखों में
जीने का सपना बुन जाती हैं
विदा होती बेटियां
अपने खोइछा में
आँसू बांध लेती हैं
अपने आँसू को देवी-देवताओं पर
चढ़ाती वापस चली जाती हैं।

विदा होती बेटियां
सामाजिक क्रूरता का
शिकार हो जाती हैं
उंगलियां पकड़कर
चलने वाली बेटियां
द्वार पर पैर का छाप
बन कर रह जाती हैं
चूड़ियों-पायल में
चहकने वाली बेटियां
किसी गुमसुम उदास रात में
चाँद की तरह डूब जाती हैं।
विदा होती बेटियां
हमेशा के लिए
विदा हो जाती हैं।

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