हिंसक
होते समाज में
मर रही है उम्मीद भी
इंसानियत की
हिंसक होते समाज में
मानवीयता ले रही है
आख़िरी साँस।
हिंसक होते समाज में
वक्त की आँखों से
बह रहा है मासूमियत का खून
दंभ भर रहा है हैवानियत|
मर रही है उम्मीद भी
इंसानियत की
हिंसक होते समाज में
मानवीयता ले रही है
आख़िरी साँस।
हिंसक होते समाज में
वक्त की आँखों से
बह रहा है मासूमियत का खून
दंभ भर रहा है हैवानियत|
हिंसक होते समाज में
सड़क पर दम तोड़ रहा है
लोकतंत्र
भीड़ अफवाहों में खो गई है|
हिंसक होते समाज में
बुद्ध, महावीर, गांधी
नकार दिए गए हैं
नकार दिए गए हैं
नफ़रत
की आग से
राख हो रहा है समाज खुद ही।
हिंसक होते समाज में
कुतर्क से गढ़े जा रहे हैं तर्क
राख हो रहा है समाज खुद ही।
हिंसक होते समाज में
कुतर्क से गढ़े जा रहे हैं तर्क
कलम
थामने वाले हाँथ
थामने लगे हैं हथियार
बुनयादी सवालों के जवाब
थामने लगे हैं हथियार
बुनयादी सवालों के जवाब
हवाई
हो गए हैं|
हिंसक होते समाज में
आँखों
से छीन गई है शर्म
ख़बर
बेख़बर हो गए हैं हक़ीक़त से
हक की लड़ाई गुमराह हो गई है।
हक की लड़ाई गुमराह हो गई है।
हिंसक
होते समाज में
सियासी आंखें
लाशों में देख रही हैं
सत्ता की भूख|
सियासी आंखें
लाशों में देख रही हैं
सत्ता की भूख|
हिंसक होते समाज में
अन्याय को मिल गया है
बहुमत का समर्थन
न्याय के कठघरे में
अट्टहास कर रहा है अहंकार
समय
के फासले में
हिंसा-अहिंसा
के अदालती फैसले
अर्थहीन
हो गए हैं|
हिंसक
होते समाज में
ज्वलंत मुद्दों पर छाई है
उदासीन चुप्पी
बिके हुए ज़मीर से
दुहराया जा रहा है
अहिंसा का पाठ
ज्वलंत मुद्दों पर छाई है
उदासीन चुप्पी
बिके हुए ज़मीर से
दुहराया जा रहा है
अहिंसा का पाठ
हिंसक
होते समाज में
अहिंसा
कमज़ोरी की
निशानी
बन गई है।
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