Sunday 1 April 2018

अभिशप्त जीवन

रिश्ते में
प्रेम की तलाश में
भटकते-भटकते
नफ़रत से भर गया मैं।

हर एक तकरार पर
टूटते विश्वास में
टूट गए रिश्ते के साथ
टूट गया मैं भी
वक्त दर वक्त
बिखर गया
अपने अंदर ही।

जिंदगी के
अंतिम पहर में
अनायास ही
अर्थ खोने लगे हैं
वो सारे मुद्दे
जिन्हें पाकर
खो दिया था
मैंने संबंध।

अब टूटे हुए
रिश्ते में
न जाने कैसे
देखने लगा हूँ मैं
प्रेम
जैसे कि
वक्त ने संबंधों के घाव पर
लगा दिया हो कोई मरहम।

मेरे लिए
अब यह दुनिया
स्याह हो गई है
अकेले जीने की
पुरजोर कोशिश में
जीना ही भूल गया हूँ मैं
वर्षों से नहीं देखी है मैंने
अपने चेहरे पर
कोई भी मुस्कुराहट।

जीवन की सफलताएं
मेरे अकेलेपन में
असफल हो गई हैं
रिश्ते की गर्माहट की चाह में
सिकुड़ता ही जा रहा है
शेष जीवन।

खुद को मजबूत
करने के वादे के साथ
रोज उठता हूँ सुबह
और
खुद में टूट जाता हूँ
शाम ढलते-ढलते।

उस एक उदास काली रात को
अगर थाम लेता मैं हाँथ
तो बच सकता था संबंध
जैसे बच जाती है चिड़िया
भयावह आंधी में भी
एक-दूसरे के साथ पंख समेटे।

आँधियों में
अचानक जड़ से उखड़ गए
हरे-भरे वृक्ष की भाँति
देखता रहता हूँ खुद को
सूखते हुए
टूटता रहता हूँ
जिंदगी की शाख से
बिखरता रहता हूँ
सूखे पत्तों की मानिंद
और
अपनी धरती से कभी
न जुड़ पाने की टीस लिए
जीता रहता हूँ मैं
अभिशप्त जीवन ।

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