अपने घर-परिवार को
दो रोटी खिलाने के लिए
माता-पिता के छोटे से सपने को
साकार करने के लिए
आसपास के माहौल में
खुद की उम्मीद को
जिंदा रखने के लिए
वर्षों की तंगहाली
अपार कठिनाइयों के बावजूद
एक अदद नौकरी की
अनवरत तलाश जारी रहती है।
इस अधूरी तलाश में
अधूरा रह जाता है जीवन भी
बहन की शादी भी
माँ का इलाज भी
पिता की दवाई भी
बच्चों की फीस भी
पत्नी के सपने भी
बेरोजगारी के दंश में
बेचैन रहती है आत्मा भी।
नौकरी की तलाश में
शहर दर शहर भटकते हुए
काम चाहने वाले हाँथ
इस कदर बेबस हो जाते हैं कि
अपने गले में रस्सी फांस
पेट की भूख को शांत कर देते हैं
और दम तोड़ती प्रतिभाओं का
यह सरोकार भी
साजिश लगने लगता है
सरकारों को
बरसाई जाती हैं लाठियाँ
वाजिब हक मांगने पर।
नौकरी के इस व्यापार में
अपनी ज़मीर को
जिंदा रखते हुए
बेरोजगार
आज़ाद देश में
गुलामों की तरह दौड़ते रहते हैं
अंतहीन अंधी दौड़
एक अदद नौकरीे की तलाश में।
दो रोटी खिलाने के लिए
माता-पिता के छोटे से सपने को
साकार करने के लिए
आसपास के माहौल में
खुद की उम्मीद को
जिंदा रखने के लिए
वर्षों की तंगहाली
अपार कठिनाइयों के बावजूद
एक अदद नौकरी की
अनवरत तलाश जारी रहती है।
इस अधूरी तलाश में
अधूरा रह जाता है जीवन भी
बहन की शादी भी
माँ का इलाज भी
पिता की दवाई भी
बच्चों की फीस भी
पत्नी के सपने भी
बेरोजगारी के दंश में
बेचैन रहती है आत्मा भी।
नौकरी की तलाश में
शहर दर शहर भटकते हुए
काम चाहने वाले हाँथ
इस कदर बेबस हो जाते हैं कि
अपने गले में रस्सी फांस
पेट की भूख को शांत कर देते हैं
और दम तोड़ती प्रतिभाओं का
यह सरोकार भी
साजिश लगने लगता है
सरकारों को
बरसाई जाती हैं लाठियाँ
वाजिब हक मांगने पर।
नौकरी के इस व्यापार में
अपनी ज़मीर को
जिंदा रखते हुए
बेरोजगार
आज़ाद देश में
गुलामों की तरह दौड़ते रहते हैं
अंतहीन अंधी दौड़
एक अदद नौकरीे की तलाश में।
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