Tuesday 21 August 2018

बुजदिली

बेख़ौफ़ हाँथों द्वारा
नंगा कर देने से
स्त्री नहीं
सोच नंगी हो जाती है
समाज की।

वो व्यवस्था नंगी हो जाती है
जिसने शपथ ली है
सुशासन की।

वो मंशा
नंगी हो जाती है
जो फंसी हैं 
बेवजह के कुतर्कों में|

वो आंखें नंगी हो जाती है
जो स्वाद की तरह परोसती है
खबरों को।

वो मर्यादा नंगी हो जाती है
जिसके आवरण में
अनावृत हो गई है स्त्री।

वो स्त्री नंगी हो जाती है
जिसने आँख पर
पट्टी बाँध रखी है   
भरी अदालत में|

वो शिक्षा नंगी हो जाती है
जो सिखाती है
यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र देवता|

वो नियत नंगी हो जाती है
जो हैवानियत से भरी है
इबादत के बाद भी|

हम सब नंगे हो जाते हैं
अपनी-अपनी बुजदिली में|

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