वे भी आवाज उठाने लगे हैं
जो
उपजाते हैं अन्न
जो भूखे सो जाने को विवश हैं
जिनके आँगन में जलता है
चाँद का दीया
जिनके बच्चे दम तोड़ देते हैं
झाड़-फूंक होते-होते।
जो डाकिया को ही समझते हैं
सबसे बड़ा बाबू
जिन्होंने जीवन के सिवा
पढ़ा ही नहीं है कोई पाठ
जो जानते ही नहीं हैं
भूख से इतर दुनिया
जो बस जानते हैं
पसीने से धरती सींचना
उम्मीदों की फसल बोना
और दाने-दाने के लिए
मोहताज हो जाना।
आवाज उठाने वाले
जो भूखे सो जाने को विवश हैं
जिनके आँगन में जलता है
चाँद का दीया
जिनके बच्चे दम तोड़ देते हैं
झाड़-फूंक होते-होते।
जो डाकिया को ही समझते हैं
सबसे बड़ा बाबू
जिन्होंने जीवन के सिवा
पढ़ा ही नहीं है कोई पाठ
जो जानते ही नहीं हैं
भूख से इतर दुनिया
जो बस जानते हैं
पसीने से धरती सींचना
उम्मीदों की फसल बोना
और दाने-दाने के लिए
मोहताज हो जाना।
आवाज उठाने वाले
एक दिन भूख के
ख़िलाफ़
बग़ावत कर देंगे
फांस देंगे शोषण की गर्दन
भूख की आग में
राख हो जाएंगी तिजोरियां
एक-एक कर मारे जाएंगे
वे सभी जिन्होंने छीन रखा है
उनसे मनुष्य होने का हक
वे भी जिनकी आत्मा मर गई है
और वे भी जो रहनुमा हो गए हैं
हुकूमत के।
फांस देंगे शोषण की गर्दन
भूख की आग में
राख हो जाएंगी तिजोरियां
एक-एक कर मारे जाएंगे
वे सभी जिन्होंने छीन रखा है
उनसे मनुष्य होने का हक
वे भी जिनकी आत्मा मर गई है
और वे भी जो रहनुमा हो गए हैं
हुकूमत के।
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