Tuesday 15 July 2014

काला होना

काला होना
अपराध मान लिया गया है
समाज में
हजारों सालों से|

दिमाग में बिठा दिया गया है कि
काला होना कमतर है गोरा होने से
इस कमतर को पाटने में
बाज़ार आ गया है
हर किसी को गोरा करना भी
एक बड़ा व्यापार है|

पर सदियों बाद भी
दिमाग में हम
काला को गोरा नहीं कर पाए हैं
सुंदर-असुंदर के इस खेल में
प्रकृति का यह भाव ही खो गया है कि
हर व्यक्ति हर जीव हर फूल
अद्भुत है अनुपम है अलौकिक है
किसी से किसी की कोई तुलना संभव नहीं|

पर जाने क्यूँ
जाने-अनजाने
यह प्रश्न सालता ही है कि
काला- गोरा होने की कोशिश में
मिट रही है मनुष्यता
कालेपन की हत्या हो रही है दिल में
उंच-नीच के इस बढती खाई में
हर कोई शामिल है कहीं न कहीं
काले-गोरे के मिथक को तोड़ने में
टूट जा रही है मनुष्यता

बिखर जा रहा है हमारा समाज|

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