Monday 21 July 2014

बलात्कार

बलात्कार व्यक्ति नहीं करता 
बलात्कार करता है समाज 
यह दिखाने के लिए 
कि पीड़ित दोयम दर्जे की प्राणी है 
उसका अधिकार घर की दहलीज नहीं लाँघ सकता 
महफूज नहीं रह सकती वह कहीं भी 

और तमाशाबीन लोकतंत्र 
सहानुभूति देता है उसे
समझाता है कायदे-कानून
कलपती है आत्मा
धिकारता है मन
दिखती है मौत

और बेलाग घूमते हैं शिकारी
एक अदद शरीर की तलाश में
महफूज होकर निडर
हँसते हुए हम पर
हमारी कायरता पर |

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