चकाचौंध शहरों की
गुमनाम गलियों में
सिसकती है आत्मा
जब बेबस बचपन
दम तोड़ देता है
एक दुकडे रोटी की
खातिर |
जिस रोटी की चाह में
भूख बन जाती है माँ
पर नहीं दे पाती
जीवन|
बेबस भूख के पेट पर
दौड़ता है राजपथ
देश का अभिमान लिए|
और कहीं कोने में
सिमटी रह जाती है
माँ
खुद को गुनाहगार
माने हुए हर जख्म का |
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