Tuesday 15 July 2014

बेबस बचपन

चकाचौंध शहरों की
गुमनाम गलियों में
सिसकती है आत्मा
जब बेबस बचपन
दम तोड़ देता है
एक दुकडे रोटी की खातिर |

जिस रोटी की चाह में
भूख बन जाती है माँ
पर नहीं दे पाती जीवन|

बेबस भूख के पेट पर
दौड़ता है राजपथ
देश का अभिमान लिए|

और कहीं कोने में
सिमटी रह जाती है माँ
खुद को गुनाहगार

माने हुए हर जख्म का |

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