जब मारी जाती है
बुधिया आस्था के नाम पर
जब जलाई जाती है
बेटी दहेज के लिए
जब बलात्कार कर
फेंक दी जाती है मुनिया
जब निर्वसन घुमाई
जाती है स्त्री डाइन कहकर
जब नाक-कान काट
दिए जाते हैं बेख़ौफ़
जब पेंड़ से लटका
दी जाती है स्त्री
तब ख़बरें नहीं
बनतीं|
जब दंगाई जला
देते है घर
जब बम से उड़ा दिए
जाते हैं लोग
जब आग से झुलस
जाती हैं लाशें
जब बेमौत मारे
जाते हैं लोग
तब ख़बरें नहीं
बनतीं|
जब आत्महत्या कर
लेता है किसान
जब भूख से मर
जाते हैं बच्चे
जब इलाज के बिना
मर जाते हैं मासूम
तब ख़बरें नहीं
बनतीं|
क्योंकि ये ख़बरें
नहीं बिकतीं
न ही फर्क पड़ता
है सरकार को
न ही पूंजीपतियों
को कोई नुकसान होता है
न ही इससे
बुद्धिजीवियों को मिलता है कोई पद |
चर्चा के विषय
होते हैं बाहुबली
जातीय समीकरण में
फिट होते नेता
फ़िल्मी हस्तियों
का कुकुर प्रेम
पूंजीपतियों की
बेलगाम हसरतें |
देश की
मानवता राजनीतिक
हो गई है
संवेदनशीलता
मुआवजा हो गई हैं
न्याय धनकुबेरों
के हाँथ की कठपुतली हो गई है |
और मीडिया आँख
होते हुए भी
अंधा हो गया है |
क्योंकि मौत भी
अब धंधा हो गया है|
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