Tuesday 15 July 2014

खुशियाँ

खुशियाँ ढूँढ रही हैं
तुम्हें
हर उस रास्ते पर
जहाँ से गुजरना है
तुम्हें
एक न एक दिन |

खुशियाँ
वहां भी थीं
जहाँ छोड़
आए हो तुम अपना
बचपन
कागज की नाव
भाई के पतंग
बहन के खिलौने |

खुशियाँ
दिल के किसी कोने में
अब भी पड़ी हैं
इंतजार में खड़ी हैं
कि तुम उन्हें
बुलाओ
और वो दौड़ी चली आए
नन्ही बेटी की तरह|

क्या तुम खुशियों को बुला सकोगे
अपना सकोगे
छोटी –छोटी बातों में
मुस्करा सकोगे?

हँस सकोगे
हर एक जख्म पर भी
उदासी को हँस के गले लगा सकोगे ?

क्या तुम दीप बुझने से पहले
उजाला ला सकोगे
पल-पल गुनगुना सकोगे ?

खुशियाँ पाने के लिए
खुशियाँ बाँट सकोगे
बतलाओ न

कब खुशियों को घर ला सकोगे|

No comments:

Post a Comment