Sunday 13 July 2014

वही दुःख है

धरती का प्रलय हो 
या आसमान बरस रहा हो 
या फिर आग झुलसा रही हो 
फिर खड़ी हो जाती हैं उम्मीदें |
हर एक गहरे दर्द के बाद 
भर ही जाते हैं घाव 
चाहे-अनचाहे मन भुला ही देता 
हर एक स्मृति |
समय की धार में 
सिमट ही जाते हैं 
हर एक बवंडर 
हर उखड़े पेड़ में 
जन्म ले ही लेता है 
एक नन्हा पौधा |
जो देख लेते हैं जीवन को 
समय के आर-पार 
वे जानते हैं कि 
पराए वक्त में 
कैसे जिया जाता है जीवन|
हर नन्हीं चिड़िया के पंख में 
सिमटे होते हैं आकाश को छूने के सपने|

सब कुछ सहज है स्वीकार्य है 
जिंदगी में ,समय में 
जो कुछ अस्वीकार्य है 
वही दुःख है |

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