Sunday 13 July 2014

ताकि जलती रहे चिता

मैं लिखना ही नहीं चाहता
वो अतीत
जो गुमसुम है
दिल के किसी कोने में
न जाने कब से |

जो लेना चाहता है आकार
उसे छुपाए रखना चाहता हूँ मैं
अतीत के सपने
अतीत के संबंध
वर्तमान में खो चुके हैं अपना वजूद|

बाबजूद इसके
अतीत स्वयं को
अभिव्यक्त करना चाहता है
वह सब कुछ कहना चाहता है
जो अनकही रह गई है
दिल में|

कहने-न कहने के इस द्वंद में
कहीं खो गया हूँ मैं भी
या कि तीर गया है समय मुझमें
जीवन के इस अर्थ में
खो गए हैं शब्द भी
इसलिए भी नहीं लिख पाता मैं
चाहकर भी
गुमसुम सवालों को
रखता हूँ अनुतरित
ताकि जलती रहे
चिता
दिल में यूँ हीं|    

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