Sunday 13 July 2014

व्यवस्था

आदमी
को आदमी
मानना अपराध है
समाज की नजरों में
आदमी
जाति है
धर्म है|

धर्म के ठेकेदार
चाहते हैं
बाँटना
इंसानियत को
धर्म को जिंदा रखने के लिए
रोज मारे जाते हैं बेगुनाह|

आदमी
नहीं जीता
जीता है
धर्म
और
गुलाम मानसिकता|
 
भूखा आदमी
लुटाता है सर्वस्व
चढ़ाता है बलि
मासूमियत का
गिरवी रखता है
आत्मा 
खतरनाक हांथों में|

उठाता है बंदूक
खेलता है
मौत का खेल
ताकि बचा रहे
धर्म|
 
सदियों से
देखते आएं हैं
हम
आदमी को
आदमखोर के रूप में
जो निगलता जा रहा है
सभ्यता
को
परंपरा और संस्कृति
के आवरण में
छिपे हुए

लोलुप मानसिकता से|

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