Tuesday 15 July 2014

भेडिये

इक रात है
जो भयावह है
जहाँ घूम रहे हैं भेडिये
नकाब पहने |

उनके साथ
कुछ लोग भेंड़ हो गए हैं
कुछ नकाब हो गए हैं
कुछ रह गए हैं
जो नारों में तब्दील हो गए हैं|

कुछ को लगता है कि
भेडिये की जीत उनकी जीत है
कुछ जान की बाजी लगाकर जीताना चाहते हैं उसे
कुछ हैं जो इस तमाशे में खो गए हैं
कुछ सेंक रहे हैं रोटियाँ|

कुछ की किस्मत में बदस्तूर जारी है काम
वे समय के साथ काम हो गए हैं
उन्हें फुर्सत ही नहीं
या वे फुर्सत चाहते ही नहीं
उन्हें जीत-हार में कोई अंतर ही नहीं दिखता
उन्होंने देखा ही नहीं वो जीवन
जिसका सपना दिखाते हैं भेडिये|

उन्हें लगता है
कि दिवास्वप्न की दुनिया में
सबकुछ इक छलावा है
सबकुछ इक दिखावा है|

जानते हैं भेडिये भी
जानते हैं हम भी
कि इस भयावह सन्नाटे में
इज्जत लूटने से बेहतर है कि
हम उस भेडिये को चुन लें
उसकी हांथों बेमौत मरने से पहले

कुछ दिन जी लें|

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