Sunday 13 July 2014

दूसरा जीवन

भूख से
बिलबिलाता बच्चा
जब
चिल्ला –चिल्ला कर
बेदम हो रहा होता है
तब
दुखिया  
के हाँथ
मांज रहे होते हैं
जूठन  
ढो रहे होते हैं
मल-मूत्र
ताकि
आधी रोटी में
पूरे परिवार
की भूख
को समेटा जा सके|

जब
रोटी नहीं
जिला पाती परिवार को
तब
दम तोड़ने लगते हैं बचपन
उजड़ने लगता है
दुखिया का संसार
और
एक –एक कर
बढ़ने लगते हैं
गिरवी रखने वाले हाँथ
और  
भीख
मांगने
को मजबूर
होने लगते हैं
जूठन
मांजने वाले हाँथ|

समाज के
निचले पायदान
पर बैठी  
दुखिया
आधी रोटी
की आस में
पूरा जीवन
बसर करने
को विवश
होती है
उसका जीवन  
अभिशप्त होता है
सब कुछ सहने के लिए
जब तक उसे
मिल नहीं जाता

दूसरा जीवन | 

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