Sunday 13 July 2014

खुद को

जिन्हें बेहद करीब से जाना
जिनके लिए मिटते रहे जिंदगी भर यूँ हीं
जिनकी छुहन भर ने बदल दी मेरी दुनिया
उन्हीं की आँखों से ओझल हो गया हूँ मैं
जैसे जगने पर बदल जाते हैं सपने|

वक्त की दीवार ने
हमें दी है अपनी-अपनी जमीन
और जिंदगी के अपने-अपने हिस्से में
सबकुछ पाकर भी
खो दिया है हमने 

खुद को |

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