जब
राह
चलते-चलते
थक जाता
हूँ|
जब
साथ छोड़
निकल
जाते हैं
सभी संगी-साथी|
जब
रह जाता
हूँ
भीड़ में
अकेला |
जब
टूट
जाती है
सब आस
तब तुम
बहुत याद आती हो
माँ |
कभी
सोचा कहाँ था
एक दिन
ऐसा
होगा
जब सब
कुछ होगा
मेरे
पास
और
तुम
नहीं होगी
माँ|
वो बचपन
तुम्हारी
थपकी से
गहरी
नींद
में खो
जाने का सुख |
वो तुम्हारे
कौर से
खाने का
स्वाद
तुम्हारे
आँचल की
छाँव
अब कहाँ
|
न वह
नींद
न वह
स्वाद
न वह
छाँव
तुम बिन
मैं कुछ
भी तो नहीं
माँ|
तुमने
चाहा
कि कभी
भूखा न रहूँ मैं |
तुमने
चाहा
कि
मुस्कुराता रहूँ मैं |
तुमने
चाहा
कि सारी
खुशियाँ सिमट जाए
मेरे
दामन में |
तुमने
चाहा
कि मुझ
पर रहे
देवी-देवताओं
का आशीर्वाद|
तुम
भूखी रही
मेरे
सपनों के लिए |
तुम
जीती रही
मेरी
खुशियों के लिए|
तुम्हारे
सब सपने
सच हुए
माँ|
पर तुम
बिन
मेरे
जीवन में
सब कुछ
अधूरा है
माँ|
सब जगह
अँधेरा है
माँ|
सब जगह
अँधेरा है
माँ|
No comments:
Post a Comment