Tuesday 15 July 2014

माँ

जब
राह चलते-चलते
थक जाता हूँ|

जब
साथ छोड़
निकल जाते हैं
सभी संगी-साथी|

जब
रह जाता हूँ
भीड़ में अकेला |

जब
टूट जाती है
सब आस
तब तुम बहुत याद आती हो
माँ |

कभी सोचा कहाँ था
एक दिन
ऐसा होगा
जब सब कुछ होगा
मेरे पास
और
तुम नहीं होगी
माँ|

वो बचपन
तुम्हारी
थपकी से
गहरी नींद
में खो जाने का सुख |

वो तुम्हारे कौर से
खाने का स्वाद
तुम्हारे
आँचल की छाँव
अब कहाँ |

न वह नींद
न वह स्वाद
न वह छाँव
तुम बिन
मैं कुछ भी तो नहीं
माँ|

तुमने चाहा
कि कभी भूखा न रहूँ मैं |

तुमने चाहा
कि मुस्कुराता रहूँ मैं |

तुमने चाहा
कि सारी खुशियाँ सिमट जाए
मेरे दामन में |

तुमने चाहा
कि मुझ पर रहे
देवी-देवताओं का आशीर्वाद|

तुम भूखी रही
मेरे सपनों के लिए |

तुम जीती रही
मेरी खुशियों के लिए|

तुम्हारे सब सपने
सच हुए
माँ|

पर तुम बिन
मेरे जीवन में
सब कुछ अधूरा है
माँ|

सब जगह अँधेरा है
माँ|
सब जगह अँधेरा है

माँ|

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