'नीच' शब्द भी
अब राजनीतिक हो गया है
नीचता के हद में बढ़ते-बढ़ते
मनुष्यता शर्मशार हो गई है
बोट बैंक की जुगत में
जाति-पाति के बंधन में
बंध गया है
देश का राजनीतिक भविष्य|
आजाद देश का
गुलाम आदमी
अब भी देखा जाता है
बंधुआ मजदूर की तरह
वह व्यक्ति नहीं
वोट होता है|
बिक जाता है
उसका मन
उसका तन
उसकी आत्मा
रहनुमाओं की
शागिर्दगी में
बह जाता है
उसका खून
उसकी इज्जत
जब उछाल दी जाती है
किसी रहनुमा द्वारा
तो उसे भुनाने भी आ जाते हैं
कई नकाबपोश |
शर्मशार लोकतंत्र में
शर्मशार होती मनुष्यता
में सबकुछ बिकाऊ है
क्योंकि
राजनीतिक व्यापार में अब
सबकुछ जायज है|
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