Tuesday 15 July 2014

आँगन

हमारी तुम्हारी दुनिया का
आँगन एक है
पर तुम्हारे हिस्से की धूप
और मेरे हिस्से की धूप में
जमीन आसमान का अंतर है|

आँगन का जो चाँद है
वो भी जानता है हमारे फासले को
वह चाहता है डूबा ही रहे वो
जब तक कि ठहर न जाए वक्त|

न चाहते हुए भी
धरती ने बाँट रखा है हमें
ताकि चैन की नींद सो सके हम

एक दिन मिट्टी में मिल जाने के लिए|

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