हमारी तुम्हारी
दुनिया का
आँगन एक है
पर तुम्हारे
हिस्से की धूप
और मेरे हिस्से
की धूप में
जमीन आसमान का
अंतर है|
आँगन का जो चाँद
है
वो भी जानता है
हमारे फासले को
वह चाहता है डूबा
ही रहे वो
जब तक कि ठहर न
जाए वक्त|
न चाहते हुए भी
धरती ने बाँट रखा
है हमें
ताकि चैन की नींद
सो सके हम
एक दिन मिट्टी
में मिल जाने के लिए|
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